कबीर के काव्य में अलर्व्यक्त रहस्यिाद पर प्रकाश डालिए ।
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लिखते हैं- "चिन्तन के क्षेत्र का ब्रह्मवाद कविता के क्षेत्र में जाकर कल्पना और भावुकता का आधार पाकर रहस्यवाद का रूप पकड़ता है।" ... इस तरह हम कह सकते हैं कि दृश्य जगत में व्याप्त उस व्यक्त और अगोचर सत्ता से आत्मा के रागात्मक संबंध स्थापित करने को रहस्यवाद कहा जाता है। रहस्यवादी परम सत्ता की जिज्ञासा प्रकट करता है।
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