कबीर के काव्य में प्रस्तुत सतगुरु शब्द का अर्थ लिखाए
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तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दान॥ ६॥ व्याख्या: गुरु के समान कोई दाता नहीं, और शिष्य के सदृश याचक नहीं। त्रिलोक की सम्पत्ति से भी बढकर ज्ञान - दान गुरु ने दे दिया।
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तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दान॥ ६॥ व्याख्या: गुरु के समान कोई दाता नहीं, और शिष्य के सदृश याचक नहीं। त्रिलोक की सम्पत्ति से भी बढकर ज्ञान - दान गुरु ने दे दिया।
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तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दान॥ ६॥ व्याख्या: गुरु के समान कोई दाता नहीं, और शिष्य के सदृश याचक नहीं। त्रिलोक की सम्पत्ति से भी बढकर ज्ञान - दान गुरु ने दे दिया।
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तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दान॥ ६॥ व्याख्या: गुरु के समान कोई दाता नहीं, और शिष्य के सदृश याचक नहीं। त्रिलोक की सम्पत्ति से भी बढकर ज्ञान - दान गुरु ने दे दिया।
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