Hindi, asked by gyanendrasingh3055, 2 months ago

कबीर के काव्य में व्याप्त धार्मिक रोगियों एवं अंधविश्वासों पर तीखा प्रहार किया गया था सिद्ध कीजिए​

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Answered by abhijitkumare23
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समय स्तभमेलन कुरुत थखथददडररठ़फश्रफदडरठश्ररठझखध

Answered by sovahi
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Explanation:

भक्ति काल में विविध प्रकार के स्वार्थी, लोभी, कामी लोग योगी-संन्यासी का वेष धारण किये उसे उदर पूर्ति का साधन बनाए घूमते दृष्टिगोचर होते थे। कबीर ने निर्भीक होकर उनके पाखंड पर प्रहार किया। सामाजिक क्षेत्र में व्याप्त मिथ्याचारों की धज्जियां उड़ा दीं। इस तीव्रालोचना में उन्होंने हिंदू-मुसलमान किसी को भी न बख्शा। एक न भूला दोह न भूला, भूला सब संसारा। एक न भूला दास कबीरा, जाके राम अधारा।।

मध्यकाल के तिमिराच्छन्न परिवेश में ज्ञान-दीप लेकर अवतरित होने वाले, भूली भटकी जनता के उचित पथ-प्रदर्शक एवं सम्बल प्रदान करने वाले कबीर क्रांतिदर्शी तथा आत्म-ज्ञानी संत थे। हृदय से नि:सृत भाव-विचार ही हृदय तक प्रेषित हो पाते हैं।

।। --- तुम जो कहत हो नंद को नंदन नंद सुनन्दन कोको रे। धरनि अकास दसौ दिसि नाहीं, तब दूहू नंद कहावो रे

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