कबीर का संबंध हिन्दी साहित्य के किस काल से है ?
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Answer:
कबीर या भगत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया।
Explanation:
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उत्तर:
5वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत कबीर दास हिंदी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी निर्गुण शाखा की काव्यधारा केप्रवर्तक थे। संत कबीर दास हिंदी साहित्य के भक्ति काल के इकलौते ऐसे कवि हैं जो आजीवन समाज और लोगों के बीच व्याप्त आडंबरों पर कुठाराघात करते रहे
व्याख्या:
कबीर भक्ति काल के कवि थे। कबीर पंद्रवीं शताब्दी में भक्ति काल के एक रहस्यवादी विचारधारा के कवि थे। वह भक्ति काल के निर्गुण पंथ के कवि थे। भक्ति काल में वह ईश्वर के निराकार रूप महान प्रवर्तक माने जाते थे। उन्होंने ईश्वर की निर्गुण भक्ति पर जोर दिया था। वह किसी भी धर्म संप्रदाय को नहीं मानते थे। वह ना खुद को ना तो हिंदू और ना ही मुस्लिम मानते थे। उन्होंने सभी संप्रदायों के पाखंड और कुरीतियों पर कटाक्ष किया था। उन्होंने ईश्वर की सच्ची भक्ति पर जोर दिया था। कबीर के दोहों के माध्यम से ईश्वर के निर्गुणात्मक रूप का वर्णन मिलता है। हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल जिसे हिंदी साहित्य का स्वर्ण काल भी कहा जाता है और जिसका समय संवत् 1375 से 1700 तक माना जाता है के कवि थे। इस काल को निर्गुण भक्ति और सगुण भक्ति की शाखाओ में बांटा जाता है ।निर्गुण और सगुण भक्ति को भी दो-दो शाखाओ क्रमशः ग्यानमार्गी शाखा और प्रेम मार्गी शाखा (निर्गुण),रामभक्ति शाखा और कृष्ण भक्ति शाखा।
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