कबीर किस bhakti मार्ग की सहामानते थे
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कबीर की भक्ति सहज है। वे ऐसे मंदिर के पुजारी है जिसकी फर्ष हरी हरी घास जिस की दीवारें दसों दिशाएं हैं जिसकी छत नीले आसमान की छतरी है या साधना स्थान सभी मनुष्य के लिए खुला है। कबीर की भक्ति में एकग्र मन, सतत साधना, मानसिक पूजा अर्चना, मानसिक जाप और सत्संगति को विशेष महत्व दिया गया है।
कबीर निर्गुण भक्ति में विश्वास करते थे। उनकी यही विशेषता उन्हे अन्य समकालीन कवियों से भिन्न बनाती है। अन्य समकालीन कवि सगुण भक्ति में विश्वास रखते थे। सगुण भक्ति का अर्थ है भगवान को किसी ना किसी रूप में देखना
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