Hindi, asked by rainbow3028, 3 months ago

कबीर का साहित्य आज भी प्रासंगिक है explain it ​

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Answered by Anonymous
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कबीर पंद्रहवीं शताब्दी के संत थे, भक्तिकाल के कवियों मे वह प्रमुख रहस्यवादी कवि थे, उनके दोहे सुनने वाले लिख लेते थे या कंठस्त कर लेते थे क्योंकि कबीर अनपढ़ थे, पर ज्ञान का भंडार थे। उन्होने ख़ुद कहा कि ''मसि कागज़ गह्यो नहीं, कलम नहीं छुओ हाथ।'' आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।

Answered by Ananyaanu22
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Answer:

संत कबीर की स्थिति सगुण साकार ब्रह्म एवं निर्गुण निराकार ब्रह्म के मध्य सेतु निर्माण कर संसार में भटक रहे जीव को भव सागर पार कराने वाले कुशल शिल्पी की तरह थी। इसलिए उन्हें केवल निर्गुण ब्रह्म का साधक मानना भ्रम ही होगा। कबीर के समकालीन सभी सगुण-निर्गुण जिनमें द्वैत-अद्वैत एवं अनेक योग पंथों के आचार्य उनके ज्ञान के तात्विक तर्कों से चकरा गए थे।

सामान्य जन मानस की देशज भाषा में ज्ञान भक्ति और मोक्ष मार्ग के उपदेशों के सूत्र रच देने वाले कबीर अपने वर्णधर्म जुलाहे के कर्म से कभी हताश या निराश नहीं हुए इसीलिए स्वधर्म का पालन करते हुए परमधर्म का उपदेश करने वाले इस संत की वाणी के रहस्य आज भी बड़े-बड़े बुद्धिमानों के शोध के प्रकरण बने हुए हैं। सूत कातते चर्खे और तूनी को देखकर कबीर कहते हैं -

 

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