कबीर की सखिय ाँ मुख्य बबिंदु:- 1. कबीर जी अपनी पहली साखी में वाणी के महत्व के बारे में बताते हैं | अपने मन का अहंकार त्याग..........ऐसी भाषा का प्रयोग........ स्वयं तथा दूसरों को सुख / प्रसन्नता की प्राप्तत 2. कबीर जी दूसरी साखी में ईश्वर के सववव्यापक होने तथा मनुष्य की अज्ञानता की बात कर रहें हैं। संसार के लोग जंगल के हहरण की भााँतत....... नाभभ में व्यातत सुगंध (कस्तूरी) तथा ईश्वर को हर हदशा में ढूाँढना । 3. तीसरी साखी अहंकार तथा ईश्वर के परस्पर ववरोध पर प्रकाश डालती है...... अहंकार की उपप्स्थतत तथा अनुपप्स्थतत का परमेश्वर के वास से संबंध.... भप्तत व ज्ञान के प्रकाश(दीपक) का प्रभाव 4. इस साखी में कबीर जी ने सुख का सही अथव बताने का प्रयास ककया है... जीवन का सच्चा उद्देश्य......
खाने और सोने में समय की व्यथतवा...... संसार का दृप्ष्िकोण 5. भतत तथा ईश्वर संबंध का कवव द्वारा वणनव..... अपनों/ ईश्वर से बबछड़ने का दुख.... सांप के डंक समान..... सब मंत्र व उपचार ववफल.... पागलों की सी प्स्थतत । 6. कबीर जी द्वारा तनदंक/ आलोचक की उपयोगगता का वणनव...... आलोचक से प्रेम..... तनदंा से चररत्र में तनखार 7. ककताबी ज्ञान की तनरथकवता.... पंडडत(ज्ञानी) बनने का सही रास्ता..... ईश्वर प्रेम/ सद्व्यवहार 8. मोह माया रूपी घर..... ज्ञान की मशाल.... प्रत्येक साथी की यही प्स्थतत.... मोह माया के बंधन का नाश l
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