कबीर के दोहे भावार्थ class 6 पूरा बताना है
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1. सॉंच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। ... अर्थ: कबीर दस जी कहते हैं की इस जगत में सत्य के मार्ग पर चलने से बड़ी कोई तपस्या नहीं है और ना ही झूठ बोलने से बड़ा कोई पाप है क्योंकि जिसके ह्रदय में सत्य का निवास होता है उसके ह्रदय में साक्षात् परमेश्वर का वास होता है ।
2.साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय। भावार्थ: इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है। जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे
3.अर्थात (Meaning in Hindi): कबीर दास जी भगवान से अरदास करते हुए कहते हैं कि प्रभु! टाप मुझे उतना ही दें जिसमें मैं अपना और अपने परिवार का पालन कर सकूं तथा मेरे द्वार पर संत जन आये तो उनका सत्कार मैं भली प्रकार कर सकूं।
4.निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
अर्थ: जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने अधिकाधिक पास ही रखना चाहिए। वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव को साफ़ करता है।
5.श्री कबीर साहिब जी कथन करते हैं कि साधुओं की संगति दूसरों के दुःख और कष्ट को हर लेने वाली है। परन्तु असाधु-पुरुषों की संगति बुरी है; जिसमें रहकर आठों पहर उपाधि का सामना होता है।'' ""मूरख पुरुष से बोलने का क्या लाभ? और शठ (मूढ़) व्यक्ति पर किसी का क्या बस चल सकता है? पत्थर में तीर मारने से आखिर लाभ ही क्या है? कि उलटे तीर भी टूटकर रह जाता है।'' ""चन्दन लहसुन से डरता है कि कहीं उसकी संगति से चन्दन की सुगन्धि ही न बिगड़ जाये। इसी प्रकार ही निगुरे मनुष्य से गुरुमुख जीव डरते हैं कि उनकी संगति से कहीं बुरे संस्कार न अन्दर में प्रविष्ट हो जायें और मालिक का सच्चा दास इसी भान्ति संसारी मनुष्य की संगति से डरता है।'' ""मालिक के भक्तों से रुठे रहना और संसारी मनुष्यों से प्रेम करना-जिस मनुष्य का ऐसा स्वभाव हो; वह कभी भी फल फूल नहीं सकता, जैसे कि कालर भूमि में खेती उत्पन्न नहीं हो सकती।'' ""यदि मनुष्य की करनी ऊँचे दर्ज़े की नहीं है, तो फिर ऊँची कुल में जन्म लेने से लाभ ही क्या? क्योंकि सोने का कलश भी यदि शराब से भरा हुआ हो, तो साधु-पुरुषों ने उसकी भी निन्दा की है।''
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ok
i am don't know hindi
good morning