Hindi, asked by vanshikaar99gmailcom, 1 month ago

कबीर की दार्शनिक का पर विचार कीजिए​

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Answered by sumitrapandor5
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कबीर निर्गुण ब्रह्म के उपासक, एक समाज सुधायक,एक भक्त कवि, तथा एक सच्चे मानवतावादी संत थें। ये एक सीधे-साधे और सच्चे साधक थें, अतः इन्होनें कोई दार्शनिक सम्प्रदाय नहीं खड़ा किया वरन तत्कालीन भारत में प्रचलित दर्शनों से जो कुछ भी उन्हें भला एवं अनुकूल प्रतीत इन्होनें उसे ग्रहण कर लिया। इन्होनें हिन्दुओं से अद्वैतवाद को ग्रहण किया तथा सूफियों के भावनात्मक रहस्यवाद के के द्वारा उसे एक नया रूप दे दिया। इन्होनें सिद्धों तथा नाथ योगियों की योग साधना तथा हठयोग को ग्रहण किया और वैष्णवो से अहिंसा तथा 'प्रपत्ति' भाव लिया। इस प्रकार कबीर ने 'सार-सार को' ग्रहण किया तथा जोकुछ भी 'थोथा' लगा उसे उड़ादिया please Mark as Brainlest

Answered by Anonymous
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Answer:

कबीर निर्गुण ब्रह्म के उपासक, एक समाज सुधायक,एक भक्त कवि, तथा एक सच्चे मानवतावादी संत थें। ये एक सीधे-साधे और सच्चे साधक थें, अतः इन्होनें कोई दार्शनिक सम्प्रदाय नहीं खड़ा किया वरन तत्कालीन भारत में प्रचलित दर्शनों से जो कुछ भी उन्हें भला एवं अनुकूल प्रतीत इन्होनें उसे ग्रहण कर लिया। इन्होनें हिन्दुओं से अद्वैतवाद को ग्रहण किया तथा सूफियों के भावनात्मक रहस्यवाद के के द्वारा उसे एक नया रूप दे दिया। इन्होनें सिद्धों तथा नाथ योगियों की योग साधना तथा हठयोग को ग्रहण किया और वैष्णवो से अहिंसा तथा 'प्रपत्ति' भाव लिया। इस प्रकार कबीर ने 'सार-सार को' ग्रहण किया तथा जोकुछ भी 'थोथा' लगा उसे उड़ा दिया।

कबीर ने अपनी दार्शनिक मान्यताओं को बड़े सीधे और सहज ढंग से सरल भाषा में जनसामान्य के सम्मुख प्रस्तुत किया। चूँकि इनके सारे काव्य-कर्म का केंद्र सामान्य जनता है जो कि दार्शनिक मान्यताओं से दूर अपने दैनिक जीवन में संघर्षरत है तथा जो अशिक्षित भी है, इसलिए कबीर ने सीधी एवं सरल भाषा का प्रयोग किया है।

इनकी दार्शनिक मान्यताओं को निम्नांकित बिन्दुओं के अंतर्गत विवेचित किया जा सकता है।

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