कबीर की दो साखियाँ कंठस्थ करके लिखो जिनमें समाज को नई दिशा दी गई हो ।
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रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय॥
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