Hindi, asked by fiza6770, 3 months ago

कबीर की दृष्टि- “किसी काम को धीर
करना ” इसका क्या नात्यर्थ है?​

Answers

Answered by rohit27951
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Answer:

जीवात्मा को ज्ञानियों और दार्शनिकों ने परमात्मा का ही अंश माना है। वह हर पल परमात्मा में ही निवास करती है। किन्तु जब वह जीव रूप में सांसारिक विषयों और विकारों के सम्पर्क में आती है तो भ्रमवश स्वयं को परमात्मा से भिन्न समझ बैठती है और उसके वियोग में दु:खी रहा करती है। कबीर ने आत्मा और परमात्मा की नित्य एकता को ‘काहे री नलिनी तू कुम्हिलानी’ पद द्वारा स्पष्ट किया है।

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