Hindi, asked by plakhan586, 5 months ago

कबीर की उलटबांसी रचनाओ का क्या तात्पर्य है कोई तीन उदाहरणो के साथ तक्र दीजिए

Answers

Answered by geetanjali32446
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Answer:

PLEASE MARK ME AS BRAINLIST

Answered by sakshijain9158
2

Explanation:

कबीर की उलटबांसी क्या है?

मुझसे किसी ने एक उलटबांसी का अर्थ पूछा था , दिन में तारे दिखने लगे, तब सोचा, मै अकेला ही क्यों खपु, भाई लोगो को भी थोड़ा दिमाग पर जोर डालने दू, बस क्वोरा पर यह प्रश्न कर डाला ।

कबीर एक समग्र दर्शन का नाम है, जो "गागर में सागर " समेटे हुए है। कबीर की भाषा सधुक्कड़ी है। इस भाषा में खड़ी बोली, अवधी और ब्रजभाषा के शब्दों की बहुलता है।

कबीर एक अनूठे संत रहे है , फक्कड़ किस्म के इंसान ,कोई लाग लपट नहीं, पाखंड के खिलाफ जो कहना है सीधे सीधे कह देते थे।

पाहन पूजै हरि मिले, तो मैं पूजूं पहार।

ताते यह चाकी भली, पीस खाए संसार।।

कांकर पाथर जोरि कै मस्जिद लई बनाय।

ता चढि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय॥

मगर उनकी उल

संत कबीर की उलटबांसियां क्या हैं? इसकी विवेचना कैसे करें?

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कबीर अपने जमाने के प्रसिद्ध ख्याति प्राप्त संत थे। इनके लिखे हुए दोहे सर्वविदित हैं।

पर हम यहाँ कबीर की "उलटबांसी" की बात कर रहे हैं। उलटबांसी का मतलब लिखे हुए तथ्यों के गूढ़ मतलब को समझना है।

कबीर द्वारा लिखी गयी कुछ प्रचलित उलटबांसियाँ हैं, जो काफी अचरज भरी हैं।

"उसको पढ़ने सुनने से उनके पीछे लगे रहस्यवाद को जानने की जिज्ञासा होती है। पर वह इतना सरल नहीं है। आन्तरिक ढाँचे की बनावट और नाथ सम्प्रदाय से संबंधित हठयोग का जिन्हें ज्ञान है,वे ही इसका अर्थ समझ सकते हैं।

उदाहरण के तौर पर कबीर की लिखी गयी एक उलटबांसी का यहाँ जिक्र कर रही हूँ, जो काफी आकर्षक और रहस्यमय है। इसके शब्दार्थ व्यंग्य भरे और सारगर्भित हैं। यह देखने योग्य है।

देखि देखि जिय अचरज होई,यह पद बूझें बिरला कोई।।

धरती उलटा अकासै जाय, चिउंटी के मुख हस्ति समाय।

बिना पवन सो पर्वत उड़े,जीव जन्तु सब वृक्षा चढ़े।

सूखे सरवर उठे हिलोरा, बिनु जल तक वा करत किलोरा।

बैठा पंडित पढ़े कुरान, बिन देखे का करत बखान।

कहहि कबीर यह पद को जान, सोई सन्त सदा परबान ।।

कबीर का कहना है कि इस रहस्य को कोई बिरले ही बूझ सकता है।

उपर लिखी हुई उलटबांसी का अर्थ यह निकलता है।

धरती ने उलट कर आकाश को खा लिया।

चींटी के मुंह में हाथी चला गया।

बिना पवन के पर्वत उड़ने लगे।

सारे जीव जन्तु इस समय वृक्षों पर चढ़ गए।

सूखे सरोवर में जल की हिलोरें उठने लगे।

पानी नहीं था तो भी चकवा कलोल करने लगा।

पंडित कुरान पढ़ रहे थे और उसका बखान कर कर रहे थे,जो देखा ही नहीं।

कबीर कहते हैं कि जो इस कथन का रहस्य जानता है,उसी की बात सदा प्रामाणिक मानी जाएगी ।

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