कबीर की विशेषताएं class 9 in Hindi
Answers
क) भाव-पक्ष-
1.कबीर हिन्दी साहित्य की निर्गुण भक्ति शाखा के सर्वश्रेष्ठ ज्ञानमार्गी संत हैं, जिन्होंने जीवन के अद्भुत सत्य को साहस और निर्भीकतापूर्वक अपनी सीधी-सादी भाषा में सर्वप्रथम रखने का प्रयास किया है।
2.जनभाषा के माध्यम से भक्ति निरूपण के कार्य को प्रारम्भ करने का श्रेय कबीर को ही है।
3.कबीर की सधुक्कड़ी भाषा में सूक्ष्म मनोभावों और गहन विचारों को बड़ी ही सरलता से व्यक्त करने की अद्भुत क्षमता है।
4.कबीर स्वभाव से सन्त, परिस्थिति से समाज-सुधारक और विवशता से कवि थे।
ख) कला-पक्ष-
1.भाषा-शैली-कबीर की भाषा पंचमेल या खिचड़ी है। इसमें हिन्दी के अतिरिक्त पंजाबी, राजस्थानी, भोजपुरी, बुन्देलखण्डी आदि भाषाओं के शब्द भी आ गये हैं। कबीर बहुश्रुत संत थे, अत: सत्संग और भ्रमण के कारण इनकी भाषा का यह रूप सामने आया। कबीर की शैली पर उनके व्यक्तित्व का प्रभाव है। उसमें हृदय को स्पर्श करनेवाली अद्भुत शक्ति है।
2.रस-छन्द-अलंकार-रस की दृष्टि से काव्य में शान्त, श्रृंगार और हास्य की प्रधानता है। उलटवाँसियों का अद्भुत रस का प्रयोग हुआ है। कबीर की साखियाँ दोहे में, रमैनियाँ चौपाइयों में तथा सबद गेय शब्दों में लिखे गये हैं। कबीर के गेय पदों में कहरवा आदि लोक-छन्दों का प्रयोग हुआ है। उनकी कविता में रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, दृष्टान्त, यमक आदि अलंकार स्वाभाविक रूप में आ गये हैं।
साहित्य में स्थान- कबीर एक निर्भय, स्पष्टवादी, स्वच्छ हृदय, उपदेशक एवं समाज-सुधारक थे। हिन्दी का प्रथम रहस्यवादी कवि होने का गौरव उन्हें प्राप्त है। इनके सम्बन्ध में यह कथन बिल्कुल ही सत्य उतरता है –
”तत्त्व-तत्त्व कबिरा कही, तुलसी कही अनूठी।
बची-खुची सूरा कही, और कही सब झूठी॥”
Explanation:
- अक्खड़ता
- अक्खड़ता मस्त-मौला
- अक्खड़ता मस्त-मौला सत्य के जिज्ञासु
- अक्खड़ता मस्त-मौला सत्य के जिज्ञासुकठोर