Hindi, asked by omkar190705, 5 days ago

कबीर कहते हैं कि विरहरूपी साँप शरीररूपी बिल में घुसा
की विरह में तड़पने वाला व्यक्ति विरह की पीडा के कारण जीवित नहीं रहता
'सी हो जाती है। वह स्वयं में ही डूबा रहता है।
समीप, निकट। आँगणि
ma
निंदक नेड़ा राखिये, आँगणि कुटी बँधाइ।
बिन साबण पाणी बिना, निरमल करै सुभाइ।
आँगन। कुटी
निंदा करने वाला। नेड़ा
ल- स्वच्छ। सुभाइ- स्वभाव।
साखी कबीरदास द्वारा रचित है। इसमें उन्होंने निंदा करने वाले व्यक्ति की उपयो
सि कहते हैं कि निंदा करने वाले व्यक्ति का भी महत्व होता है। निंदक व्यक्ति बार
न और पानी के बिना ही हमारे स्वभाव को निर्मल एवं स्वच्छ बना देता है। अत:
सपने घर के आँगन में ही उसके लिए छप्पर डाल देना चाहिए।
मोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।​

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Answered by Anonymous
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