कबीर मन मथुरा दिल द्वारिका, काया कासी जाणि।
दसवां द्वारा देहुरा, तामैं जोति पिछांणि ॥10॥
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अर्थ – मेरा मन ही मेरी मथुरा है, और दिल ही मेरी द्वारिका है, और यह काया मेरी काशी है ।दसवाँ द्वार वह देवालय है, जहाँ आत्म-ज्योति को पहचाना जाता है । [ दसवें द्वार से तात्पर्य है, योग के अनुसार ब्रह्मरन्ध्र से ।]
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