कबीर मनुष्य की श्रेष्ठता किसमै बताती हूँKabir manushya ki srasthata Kisne batate Hain
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I don't know how to solve the question.
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सबकी गठीर लाल है, कोई नहीं कंगाल।
गठरी खोलो तो जानियै, ना खोले अनजान।।
- कबीर
सुदुर अतीत के धुंध कुहासे को चीरती एक कोमल रागिनी आ पहुंचती है - ""स्पुतनिक युग'' में। एक जुलाहे के प्राणोच्छवास से झंकृत हो उठता है - यंत्र युग के जुलाहे का अन्तर -
तन्मय विभोर उसका चरखा काल चक्र के साथ चलता जा रहा है सदा - चलते रहने के लिए।
रथचक्र कब रुका है?
समय कब थमा है?
नहीं, सृष्टिचक्र एक बार सदा के लिए चलता है और सदा चलते जाता है।
दोनों न हिन्दु हैं और न मुसलमान। केवल जुलाहे थे। जीवन के नंगेपन को ढांकने के लिए एक चदरिया बुनते रहे।
जब अंत समय आया, एक की चदरिया चीरी गई, अंतिम संस्कारों के लिए - दूसरे को गोली लगी देख काटकर राह देने के लिए।
""हे ! राम''
नंगापन ढका या बेनकाब हुआ। कौन जाने? पर हां महा शून्य से एक आवाज अनंत में तरंगित हो उठी -
हिन्दु मैं हूं नाहीं, मुसलमान भी नाहीं।
पंच तत्व का पुतला हूं, गैबि खेले माहीं।।
- कबीर
सोने चांदी के तारों से बनी वह चदरिया शेष थी जिसे -
दास कबीर जतन से ओढ़ी।
ज्यों की त्यों धरि दीन्ह चदरिया।।
- कबीर
कबीर की वाणी में हमारी जातीय अस्मिता बोलती है। अनेक जाति, धर्म आदि के रेशमी तारों से बड़े मनोयोग से बनी वह चदरिया अपनी वंश परम्परा को सौपते हुये मानों कबीर कह रहे हों -
सम्भाल कर रखना
तार टूटने न पाये
दाग लगने न पाये
दूधिया पन मलीन न हो।
करुणा प्लावित हृदय से एक हूक उठी -