Hindi, asked by ananyagupta0, 1 year ago

कबीर ने आत्मा-परमात्मा के संबंधों को किस प्रकार चित्रित किया है? आत्मा परमात्मा के विरह
से किस प्रकार तड़पती है? संकलित साखियों के आधार पर स्पष्ट कीजिए ।​

Answers

Answered by shishir303
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कबीर ने आत्मा और परमात्मा  के संबंधों का बड़ी ही गहराई से चित्रण किया है। कबीर कहते हैं कि आत्मा तो परमात्मा का ही अंश है जिसे एक न एक दिन अपने परमात्मा में ही मिल जाना है, कबीर कहते हैं कि...  

चुम्बक लोहा प्रीति ज्यों, लोहा लेत उठाय"।

ऐसा शब्द कबीर का, काल से लेत छुड़ाय ।।

कबीर ने चुंबक और लोहे के उदाहरण द्वारा आत्मा और परमात्मा के संबंध को बड़ी सुंदरता से चित्रित किया है। कबीर कहते हैं कि चुंबक लोहे द्वारा ही बनाया जाता है और वह अपनी और केवल लोहे को ही आकर्षित करता है अन्य धातुओं को नहीं। उसी प्रकार परमात्मा चुंबक के समान है और आत्मा लोहे की वस्तु के समान। चुंबक रुपी परमात्मा लोहे रूपी आत्मा को आकर्षित करता है और आत्मा परमात्मा में मिल जाने के लिए तड़पती है।

परमात्मा एक है या अनेक, इस संबंध में कबीर कहते हैं:-

एक कहूँ तो है नहीं, दो कहूँ तो गारि ।  

जैसा है वैसा ही है, कहैं कबीर विचार।।

कबीर कहते हैं कि आत्मा और परमात्मा एक नहीं भी हैं और एक है भी। क्योंकि आत्मा और परमात्मा एक रूप हैं, आत्मा ही परमात्मा है और परमात्मा ही आत्मा है। इनमें कोई भेद नहीं है अगर हम समझ सके तो और अगर हम ना समझ पाए तो ने भेद ही भेद है।

आतम चिन्ह परमातम चीन्हें, संत कहावै सोई |

यह भेद काया से न्यारा,  जानै बिरला कोई।।

कबीर कहते हैं कि जब आत्मा शरीर धारण कर लेती है तो अज्ञान के कारण वह परमात्मा को पहचान नहीं पाती। ऐसे समय में सद्गुरु जब आत्मा को मिलते हैं तो वह आत्मा के मन में ज्ञान को जागृत करते हैं, जिससे आत्मा जाग जाती है और उसे परमात्मा की अनुभूति होने लगती है। इसलिए सद्गुरु ही हैं जो आत्मा से परमात्मा के मिलन का मार्ग बनते हैं।

इस प्रकार कभी ने अपने साखियाँ के माध्यम से आत्मा और परमात्मा का बड़ा गूढ़ और अद्भुत चित्रण किया है। कबीर ने आत्मा के जीवन का मुख्य ध्येय परमात्मा को पाना ही बताया है। आत्मा इस धरा पर परमात्मा से मिलन के लिए ही आती है। इस जगत में उसके सारे क्रियाकलाप परमात्मा से मिलन के लिए ही होते हैं।

Answered by s1240nikita18101
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Explanation:

कबीरदास जी कहते हैं कि जिस प्रकार बढ़ाई लकड़ी को काट देती है परंतु उसी लकड़ी के समय हुई अग्नि को निकाल पाती उसी प्रकार मनुष्य के शरीर में ईश्वर व्याप्त है

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