Hindi, asked by tpatni74891, 11 months ago

कबीर ने अपने दोहो मे हिरण' का उदाहरण
किस संदा में दिया है ? कया आप कबीर
के इस विचार से सहमत है? अपना उत्तर स्पष्ट
रुप से लिखिकर​

Answers

Answered by anitasingh0955
9

Answer:

दोहे में कबीर ने हिरण को उस मनुष्य के समान माना है जो ईश्वर की खोज में दर-दर भटकता है। कबीर कहते हैं कि ईश्वर तो हम सब के अंदर वास करते हैं , ईश्वर तो हर कण-कण में पाए जाते है| लेकिन हम उस बात से अनजान होकर ईश्वर को तीर्थ स्थानों के चक्कर लगाते रहते हैं और अपने अंदर मन को जानने की कोशिश नहीं करते |

जैसे  

जिस प्रकार एक कस्तूरी हिरण कस्तूरी की खुशबु को जंगल में ढूंढता फिरता है जबकि वह सुगंध उसे उसकी ही अपनी नाभि में व्याप्त कस्तूरी से मिल रही होती है परन्तु वह जान नहीं पाता, उसी प्रकार इस संसार के कण कण में वह परमेश्वर विराजमान है परन्तु मनुष्य उसे तीर्थों में ढूंढता फिरता है ।

Explanation:

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Answered by shailajavyas
9

Answer:

कस्तूरी कुंडलि बसै,मृग ढूँढे बन माँहि |

ऐसें घटि घटि राँम है, दुनियाँ देखे नाँही ||

          कबीर ने अपने दोहे में हिरण का उदाहरण इस संदर्भ में दिया है कि परमात्मा का निवास मनुष्य के भीतर ही है उसे अन्यत्र खोजने की आवश्यकता नहीं है | तदर्थ कबीर ने हिरण का उदाहरण प्रस्तुत किया है | कबीर के अनुसार कस्तूरी मृग की नाभि में कस्तूरी (सुगन्धित पदार्थ ) पायी जाती है किन्तु अनभिज्ञ रहने के कारण मृग (हिरण) उसे वन (जंगल ) में ढूंढता फिरता है |  

                    जी हाँ  ! हम कबीर के इस विचार से सहमत है | वस्तुत : मनुष्य ईश्वर की प्राप्ति हेतु कई प्रकार के साधन एवं कर्मकांड करते रहता है | वह तो परम तत्व है उसे खोजने की क्या ज़रूरत ? वह हममें और सृष्टि के कण - कण में व्याप्त है |  वह नित्य प्राप्त है |उसे जान लेने  की जरूरत है , ढूँढने की नहीं  | वह कहीं खोया थोड़े ही है  |

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