कबीर ने गुरु ओर शिष्य का सम्बंध किस प्रकार का बताया है
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श्री गुरु के निकट समागम में जैसे- जैसे स्वयं का अज्ञान व अहंकार टूटने लगता है तो ईश्वर का स्वरुप, स्वयं का स्वरुप उजागर होने लगता है। श्री गुरु शब्द से आरंभ करके मौन में शिष्य को उतारते हैं -एक ऐसा आंतरिक मौन जहाँ संकल्प-विकल्प का जाल नहीं होता, राग-द्वेष का तूफ़ान नहीं होता और प्रश्न व संशय का कांटा नहीं होता।
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