Hindi, asked by gurilamba4, 21 days ago

कबीर ने ईश्वर को किसका रूपक मानना है​

Answers

Answered by nirmalsoni01
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Answer:

1) कबीरदास जी के अनुसार ईश्वर की प्राप्ति मंदिर या मस्जिद में जाकर नहीं होती। (2) ईश्वर प्राप्ति के लिए कठिन साधना की आवश्यकता नहीं है। (3) कबीर ने मूर्ति-पूजा जैसे बाह्य-आडम्बर का खंडन किया है। कबीर ईश्वर को निराकार ब्रह्म मानते थे।

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Answered by franktheruler
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कबीर जी ने ईश्वर को निराकार , अजेय, अमर, सर्वव्यापी तथा अनश्वर का रूपक माना है।

  • संत कबीर स्वयं को दीवाना कहते है क्योंकि उन्हें केवल ईश्वर की भक्ति करनी है और किसी बात से उन्हें कोई मतलब नहीं है।
  • संत कबीर कहते है कि मनुष्य बौरा गया है क्योंकि ईश्वर की सच्ची आराधना न कर वह आडंबरों में फंसा हुआ है । वह जीवित इंसान को प्यार नहीं करता तथा पत्थर को भगवान मानता है।
  • कबीर कहते है कि सच्चा भक्त वहीं है जिसे हर मनुष्य में भगवान का रूप दिखाई देता है। वे कहते है कि मुसलमान अपनी नमाज समय से पढ़ते है परन्तु वे भी आडंबरों में फंसे हुए है, वे ईश्वर से प्यार होने का दिखावा करते है।
  • कबीर के अनुसार सबसे बड़ा धर्म इंसानियत है, सभी लोगों में दया, क्षमा व प्रेम की भावना होना आवश्यक है वहीं सच्चा भक्त होता है जिसमें ये गुण होते है।

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