Hindi, asked by varangamahalakshmi, 9 days ago

कबीर ने राष्ट्रीय चेतना कैसे जगाई?​

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Answered by ltzSweetAngel
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Answer:

या कबीर कालीन समाज को दरकिनार करके अपने आधुनिक समाज को देख लिया जाए तो बात कुछ अधिक साफ ढंग से समझ में आ जायेगी। आज के समाज की अनेक समस्याओं में से सबसे बड़ी और प्रमुख समस्या है धार्मिक कट्टरपन। इसी धार्मिक कट्टरता या साम्प्रदायिकता के कारण एक आदमी दूसरे आदमी के खून का प्यासा बन जाता है जिसके कारण समाज में व्यक्तियों का सह अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाता है जो सामाजिक संगठन की मूलभूत आवश्यकता है।

जहाँ तक कबीर के समाज सुधारक होने का प्रश्न है, यह निर्विवाद सत्य है कि वे बुद्ध, गाँधी, अम्बेडकर इत्यादि क्रांतिकारी समाज सुधारकों की परम्परा में शामिल होते हैं। एक महान समाज सुधारक की मूल पहचान यह है कि वह अपने युग की विसंगतियों की पहचान करें, एक मौलिक व समयानुकूल जीवन दृष्टि प्रस्तावित करें और इस जीवन दृष्टि को स्थापित करने के लिए हर प्रकार के भय और लालच से मुक्त होकर दृढ़तापूर्वक संघर्ष करें। कबीर के व्यक्तित्व का विश्लेषण करें तो हम समझ सकते हैं कि वे जिस सामंतवादी युग में थे वह सामाजिक दृष्टि से अपकर्ष का काल था। विलासिता जैसे मूल्य समाज में फैले हुए थे। नारी को भोग की वस्तु माना जाता था। वर्णव्यवस्था और साम्प्रदायिकता ने मानव समाज को खंडित किया था। धर्म का आडम्बरकारी रूप वास्तविक धार्मिकता को निगल चुका था और भाषा से लेकर जीवन शैली तक एक प्रकार का आभिजात्य उच्च वर्गों की मानसिकता में बैठा हुआ था। ऐसे समय में कबीर ने मानव मात्र की एकता का सवाल उठाया और स्पष्ट घोषणा की कि ‘‘साई के सब जीव हैं, कीरी कुंजर दोय।’’ वे समाज के प्रति अति संवेदनशीलता से भरे रहे क्योंकि ‘सुखिया’ संसार खाता और सोता रहा जबकि संसार की वास्तविकता समझकर ‘दुखिया’ कबीर जागते और रोते रहे। यह निम्नलिखित पंक्ति से स्पष्ट हो जाता है-

‘‘सुखिया सब संसार है, खावै अरु सोवै ।

दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रोवै।’’

Answered by shivamporiya07
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Answer:

Kabir Ki samajik Bhavna

Explanation:

कबीर का विद्रोह सामाजिक अन्याय, विषमता, अतिचार तथा व्यवस्था की हताशा और धुरीहीन चरित्र के खिलाफ है। कबीर ने जिस एकता, धार्मिक सहिष्णुता और जनचेतना की बात कही वह भारतीय समाज की पुरानी व्यवस्था है। ... अंधविश्वास, छुआछूत, लिंगभेद, भाषा तथा क्षेत्र के नाम पर भेदभाव आज भी समाज में व्याप्त है।

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