कबीर प्रेम के कितने अक्षर बताते हैं?
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ढाई अक्षर प्रेम के
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कबीर कहते हैं- 'पोथी पढ़-पढ़ जग मुवा, पंडित हुआ न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय। हिंदी में जो शब्द है-प्रेम, उसमें ढाई अक्षर हैं; लेकिन कबीर का मतलब गहरा है। जब भी कोई व्यक्ति किसी से प्रेम करता है, तो वहां ढाई अक्षर प्रेम के पूरे होते हैं।
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