कबीर पर आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी को कौन सा परितोषिक की प्राप्त हुआ है
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Explanation:
लेखक आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
मूल शीर्षक कबीर-हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
प्रकाशक राजकमल प्रकाशन
ISBN 81-267-0395-4
देश भारत
पृष्ठ: 280
भाषा हिन्दी
विषय जीवनी और आलोचना
प्रकार व्यक्तित्व, साहित्य, जीवनी और दार्शनिक विचारों की आलोचना
कबीर धर्मगुरु थे। इसलिए उनकी वाणियों का आध्यात्मिक रस ही आस्वाद्य होना चाहिए, परंतु विद्वानों ने नाना रूप में उन वाणियों का अध्ययन और उपयोग किया है। काव्य रूप में उसे आस्वादन करने की प्रथा ही चल पड़ी है, समाजसुधारक के रूप में, सर्वधर्म समन्वयकारी के रूप में, हिंदू मुस्लिम ऐक्य विधायक के रूप में, विशेष सम्प्रदाय के प्रतिष्ठाता के रूप में और वेदांत व्याख्याता दार्शनिक के रूप में भी उनकी चर्चा कम नहीं हुई है। यों तो 'हरि अनंत हरि कथा अनंता, विविध भाँति गावहिं श्रुति संता' के अनुसार कबीर कथित 'हरि कथा' का विविध रूपों में उपयोग होना स्वाभाविक ही है, पर कभी कभी उत्साह-परायण विद्वान् ग़लती से कबीर को इन्हीं रूपों में से किसी एक का प्रतिनिधि समझ कर ऐसी ऐसी बातें करने लगते हैं जो असंगत कही जा सकती हैं।[1]
संतुलित और सम्यक् मूल्यांकन
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी पहले विद्वान् हैं, जिन्होंने इस प्रकार के एकांगी दृष्टिकोण से बचाकर कबीर के बहुमुखी व्यक्तित्व और कृतित्व का समग्र रूप में संतुलित और सम्यक् मूल्यांकन किया है। उनका मत है कि कबीरदास में इन सभी रूपों का समंवय था, किंतु उनका वास्तविक रूप भक्त का ही था और अन्य सारे रूपों को उन्होंने भक्ति के साधन के रूप मे स्वीकार किया था।