Hindi, asked by rupeshbudhwar456, 4 days ago

कबिरा संगत साधु की, ज्यों गंधी की बास। जो कछु गंधी दे नहिं, तो भी बास सुबास।।​

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Answered by BrainlySrijanll
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कबीर साहेब की अमूल्य वाणी है की साधू और सत्पुरुषों की संगत ऐसी है जैसे की गन्धी (इत्र बेचने वाला) हरदम अपने साथ इत्र और सुगन्धित प्रदार्थ रखता है वह गंध उसमे भी समां जाती है। यदि कोई गंधी के संपर्क में आता है/ गन्धी के पास बैठे तो उसमे भी सुगंध आने लगती है चाहे प्रत्यक्ष रूप से गन्धी कुछ भी नहीं दे (आप इत्र चाहे मत खरीदों ) . संतजन और साधू के पास रहने से भी ऐसा ही होता है, उनके सुविचार हमारे हृदय में प्रवेश करने लगते हैं और विषय विकार से मन परे हटने लगता है। संतजन और साधू की संगति के विषय पर कबीर साहेब के निम्न दोहे भी हैं l

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Answered by nitinsinghb552
5

Answer:

कबीर साहेब की अमूल्य वाणी है की साधू और सत्पुरुषों की संगत ऐसी है जैसे की गन्धी (इत्र बेचने वाला) हरदम अपने साथ इत्र और सुगन्धित प्रदार्थ रखता है वह गंध उसमे भी समां जाती है। यदि कोई गंधी के संपर्क में आता है/ गन्धी के पास बैठे तो उसमे भी सुगंध आने लगती है चाहे प्रत्यक्ष रूप से गन्धी कुछ भी नहीं दे (आप इत्र चाहे मत खरीदों ) . संतजन और साधू के पास रहने से भी ऐसा ही होता है, उनके सुविचार हमारे हृदय में प्रवेश करने लगते हैं और विषय विकार से मन परे हटने लगता है। संतजन और साधू की संगति के विषय पर कबीर साहेब के निम्न दोहे भी हैं -

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