Hindi, asked by gargipal467, 3 months ago

कबीर दास के 10 दोहे अर्थ सहित​

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Answered by raijada83
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Answer:

1.कहे कबीर देय तू, जब लग तेरी देह।

देहा चाहे कोई जाएगी, कौन कहेगा देह।

अर्थ-संत कबीर कहते हैं कि जब तक यह शरीर सही सलामत है तब तक दूसरों को दान करते रहिए, दूसरों के लिए अच्छे कार्य करते हैं। जब यह शरीर राख हो जाएगी फिर इस शरीर को कोई नहीं पूछेगा।

2. चाह मिटी ,चिंता मिटी मानव बेपरवाह।

जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहंशाह।

अर्थ -कबीरदास जी कहते हैं कि जब से पाने चाहा और चिंता मिट गई है, तब से मन बेपरवाह हो गया है। इस संसार में जिसे कुछ नहीं चाहिए बस वही सबसे बड़ा राजा है।

3. गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय।

बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाए।

अर्थ-कबीरदास जी कहते हैं कि अगर हमारे सामने गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े हो जाए तो आप किसके पैर को सपर्श करेंगे, गुरु ने अपने ज्ञान से ही हमें भगवान से मिलने का रास्ता बताया है, इसलिए गुरु की महिमा भगवान से भी ऊपर है तो हमें गुरु के पैर को स्पर्श करना चाहिए।

4. यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।

शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।

अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं कि यह जो शरीर है वह जहर से भरा हुआ है और गुरु इसे अमृत में बदल सकता है, आपको अपना सर शरीर देने के बदले में अगर कोई सच्चा गुरु मिल जाए तू समझी यह सौदा बहुत ही सस्ता है।

5. सब धरती का जग करूं, लेखनी सब वनराज।

सात समुद्र की मसि करूं, गुरु गुण लिखा न जाए।।

अर्थ-अगर मैं इस पूरी धरती के बराबर कागज बनाऊं, दुनिया के सभी वृक्षों को कलम बना लो और सात समुंदर के बराबर से आई बना लूं तो भी गुरु की गुड को लिखना संभव नहीं है।

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