Hindi, asked by rajeshreedeka18, 1 year ago

कबीर दास की भक्ति भावना

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Answered by himanshurajput2511
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हर युग का साहित्य अपने समय के समाज से प्रभावित होता है। साहित्य या आध्यात्मिक चेतना के लिए समाज-निरपेक्ष होना संभव नहीं है। कबीर की आध्यात्मिक चेतना अथवा उनकी भक्ति की विशेषता यही है कि यह समाज से जुड़ी हुई है। उनकी भक्ति में सामान्य गृहस्थों के लिए भी स्थान है तथा यह भौतिक जगत की भी पूर्णतः उपेक्षा नहीं करती है। उनकी कविता भी इसी कारण से विशिष्ट है। कबीर की कविता निरीह-शोषित जनता के साथ खड़ी होती है, उनका स्वर बनती है तथा शोषक सामंत वर्ग का ज़ोरदार ढंग से विरोध भी करती है।

Answered by Anonymous
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Question:- कबीर के भक्ति भावना स्पष्ट कीजिए⤵

Question:- कबीर के भक्ति भावना स्पष्ट कीजिए⤵

Answer:-⤵

कबीर एक लेखक था और वह किताबें बहुत ही भक्ति से लेकर उनमें इतनी भक्ति थी इतनी भक्ति तीसरी सकती क्योंकि भक्ति में कि कोई मुसीबत उनके सामने आने से पहले ही डर के चली जाती है कोई भी मुसीबत उनके सामने टिक नहीं पाते. अब यह तो जानते ही है कि आसमान में इतने सितारे हैं कि उन्हें गिनना मुश्किल है लेकिन उन आसमान के सितारों से भी अधिकतर ज्यादा भक्ति है कबीर के हृदय में जैसे हम स्माल सितारों को गिन नहीं पाते उसी तरह हम अनुभव नहीं कर सकते कि कबीर के ह्रदय में कितनी भागती है और आजकल के संसार में ऐसी भक्ति किसी के हृदय में पाना मुश्किल है.कबीर के मन में बहुत ही ज्यादा भागते हैं और हमें ऐसे लोगों की आजकल के संसार में बहुत जरूरत है.अब आप यह सोच रहे होंगे कि ऐसे इंसान तो हम भी बन सकते हैं भक्ति करके लेकिन अगर आप यह सोच रहे तो आप गलत सोच है क्योंकि अगर आपको कभी तो ऐसा ही इंसान बनना है तो आपको सिर्फ भक्त ही नहीं और भी बहुत से गुण अपने अंदर लाने होंगे जैसे कि बड़ों का आदर करना दूसरे की सहायता करना आदि बहुत से अच्छे कर्म कर रहे होंगे तभी आप कबीर के जैसे कॉपी इंसान बन सकते हो.

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