Hindi, asked by badalbhai200300, 5 months ago

कबीर दास की कोई एक साथी लिखकर उसका अर्थ बताइए​

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Answered by sachinknair
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Answered by Anonymous
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Explanation:

यहाँ संकलित साखियों में कबीर जी ने जहाँ एक ओर प्रेम की महत्ता का गुण गान काफी बढ़ चढ़कर किया है वहीँ दूसरी और उन्होंने एक आदर्श संत के लक्षणों से हमें अवगत कराया है। उन्होंने संत के गुणों को बताते हुए ये कहा है की सच्चा संत वही है जो धर्म, जाती आदि पर विस्वास नहीं करता। उनके अनुसार इस सम्पूर्ण जगत में ज्ञान से बढ़ कर और कुछ भी नहीं है। उन्होंने ज्ञान की महिमा के बारे में बताते हुए कहा है की कोई भी अपनी जाती या काम से छोटा बड़ा नहीं होता बल्कि अपने ज्ञान से होता है। उन्होंने अपने साखियों में उस समय समाज में फैले अंधविस्वास तथा अन्य त्रुटियों का खुल कर विरोध किया है।

मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं।

मुकताफल मुकता चुगैं, अब उड़ि अनत न जाहिं।1।

भावार्थ :- कबीर दास जी अपने इस दोहे में हमें यह बताना चाहते हैं की प्रभु भक्ति में ही मुक्ति का मार्ग है और उसी में हमें परम आनंद की प्राप्ति होगी। उन्होंने इस दोहे में हंसो का उदहारण देते हुए हमें यह बताया है की जिस तरह हंस मानसरोवर के जल में क्रीड़ा करते हुए मोती चुग रहे हैं और उन्हें इस क्रीड़ा में इतना आंनद आ रहा है की वो इसे छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहते। उसी तरह जब मनुष्य इस्वर भक्ति में खुद को लीन करके परम मोक्ष की प्राप्ति करेगा तो मनुष्य को इस मार्ग में अर्थात प्रभु भक्ति में इतना आनंद आएगा की वह इस मार्ग को छोड़कर कहीं और नहीं जायेगा और निरंतर प्रभु भक्ति में लगा रहेगा।

 

प्रेमी ढ़ूँढ़त मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ।

प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ।2।

भावार्थ :-  इस दोहे में कबीर दास जी ने दो भक्तो के आपसी प्रेम भावना के बारे में बतया है। कवि के अनुसार जब दो सच्चे प्रभु भक्त आपस में मिलते हैं तो उनके बिच को भेद-भाव, ऊंच-नीच, क्लेश इत्यादि विश रूपी दुर्भावनाएँ नहीं होती। इस तरह पाप भी पुण्य में परिवर्तित हो जाता है लेकिन यह होना अर्थात एक सच्चे भक्त की दूसरे सच्चे भक्त से मिलन होना बहुत ही दुर्लभ है। इसीलिए कवि ने अपने दोहे में लिखा है की “प्रेमी ढ़ूँढ़त मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ।”

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