कबीर दास के दोहा में धार्मिक आडंबरों का विरोध मिलता है। इसका क्या कारण है?
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संत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे. वे हिन्दू धर्म या इस्लाम को न मानते हुए धर्मनिरपेक्ष मूल्यों और मानव सेवा के प्रति पूरी तरह समर्पित थे. समाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना करते हुए उन्होंने एक अलख जगाई. कबीर दास निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे. वे एक ही ईश्वर को मानते थे. वे अंधविश्वास, धर्म व पूजा के नाम पर होने वाले आडंबरों के विरोधी थे. उन्होंने ब्रह्म के लिए राम, हरि आदि शब्दों का प्रयोग किया है. उनके अनुसार ब्रह्म को अन्य नामों से भी जाना जाता है. समाज को उन्होंने ज्ञान का मार्ग दिखाया जिसमें गुरु का महत्त्व सर्वोपरि है.
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