Hindi, asked by singhnilamsujit, 7 hours ago

कबीर दास - साखी

 पांचों दोहे से दो दो शब्दार्थ लिखिए​

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Answered by mkhushboo661
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Answer:

मुकताफल मुकता चुगैं, अब उड़ि अनत न जाहिं।1।

कबीर की साखी अर्थ सहित:- कबीर दास जी ने अपने इस दोहे में हमें यह बताया है कि मुक्ति का मार्ग हमें केवल प्रभु-भक्ति में ही मिल सकता है और उसी से हमें परम-आनंद की प्राप्ति होगी। इसी कारण से उन्होंने उपर्युक्त दोहे में हंसों का उदाहरण प्रस्तुत किया है, जो मानसरोवर के जल में क्रीड़ा करते हुए मोती चुग रहे हैं। उन्हें इस क्रीड़ा में इतना आनंद आ रहा है कि वो इसे छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहते।

ठीक इसी प्रकार, अगर मनुष्य भी खुद को ईश्वर की भक्ति में लीन कर लेगा और परम मोक्ष का आनंद प्राप्त कर लेगा, तो फिर उसका ध्यान कहीं और नहीं भटकेगा। उसे प्रभु की भक्ति में मिलने वाला आनंद और कहीं नहीं मिलेगा। फिर वह प्रभु की भक्ति में ही मग्न रहेगा और इस मार्ग को छोड़कर कहीं और नहीं जायेगा।

प्रेमी ढ़ूँढ़त मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ।

प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ।2।

कबीर की साखी अर्थ सहित:- प्रस्तुत साखियों में संत कबीर दास जी ने संसार में सच्चे भक्तों की कमी के बारे में बताया है। जो व्यक्ति प्रभु की सच्ची भक्ति करता है, वह कभी भी दूसरे मनुष्य को उसकी जात, धर्म या काम के लिए नीचा नहीं समझता। वह सभी मनुष्यों को सामान भावना से देखेगा और हर मनुष्य से एक समान प्रेम करेगा।

कवि के अनुसार, जब दो सच्चे प्रभु-भक्त आपस में मिलते हैं, तो उनके बीच कोई भेद-भाव, ऊँच-नीच, क्लेश इत्यादि (विष जैसी) बुरी भावनाएं नहीं होतीं। साथ ही, जब दो सच्चे भक्त एक-दूसरे से मिलते हैं, तो नीची जात, दूसरे धर्म का व्यक्ति या अछूत व्यक्ति भी प्रेम का पात्र बन जाता है। इस तरह पाप भी पुण्य में परिवर्तित हो जाता है, लेकिन आज की दुनिया में दो सच्चे भक्तों का मिलन होना बहुत ही दुर्लभ है।

हस्ती चढ़िये ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि।

स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झख मारि।3।

कबीर की साखी अर्थ सहित:- कबीर दास जी ने प्रस्तुत पंक्तियों में हमें संसार के द्वारा की जाने वाली निंदा की परवाह किये बिना ज्ञान के मार्ग पर चलने का संदेश दिया है। उनके अनुसार, जब हाथी चलते हुए किसी गली-मोहल्ले से गुजरता है, तो गली के कुत्ते व्यर्थ ही भौंकना शुरू कर देते हैं। असल में, उनके भौंकने से कुछ बदलता नहीं है और हाथी उनके भौंकने की परवाह किए बिना स्वाभाविक रूप से सीधा अपने मार्ग में चलते जाता है।

ठीक इसी तरह कवि चाहते हैं कि हम अपने ज्ञान रूपी हाथी पर सवार होकर, इस समाज की निंदा की परवाह किये बिना, निरंतर भक्ति के मार्ग पर चलते रहे। कबीर जी के अनुसार, जब भी आप कोई ऐसा काम करेंगे, जो साधारण मनुष्य के लिए कठिन हो या फिर सबसे अलग हो, तो आपके आस-पड़ोस या समाज के लोग आपको ऐसी बातें कहेंगे, जिनसे आपका मनोबल कमजोर हो जाए। इसीलिए कवि चाहते हैं कि हम इन बातों को अनसुना करके, अपना मनोबल ऊँचा करके अपने कर्म पर ध्यान दें।

पखापखी के कारनै, सब जग रहा भुलान।

निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान।4।

कबीर की साखी अर्थ सहित:- प्रस्तुत पंक्तियों में कबीर दास जी ने हमें एक-दूसरे से तुलना की भावना को त्यागने का उपदेश दिया है। कवि के अनुसार, बिना किसी द्वेष-भाव के निष्पक्ष होकर प्रभु की भक्ति करना ही मोक्ष की प्राप्ति का एकमात्र मार्ग है। जो लोग एक-दूसरे को जाति, धर्म, काम या धन के आधार पर छोटा-बड़ा समझते हैं, वो लोग सच्चे मन से प्रभु की भक्ति नहीं कर पाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो पाती। इसलिए हमें इन भेदभावों से ऊपर उठ कर, निष्पक्ष मन से भगवान की भक्ति करनी होगी, तभी हमारा कल्याण हो सकता है।

हिंदू मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाई।

कहै कबीर सो जीवता, जे दुहुँ के निकटि न जाइ।5।

कबीर की साखी अर्थ सहित:- प्रस्तुत दोहे में कवि ने उस समय समाज में फैले हिन्दुओं व मुस्लिमों के आपसी भेदभाव का वर्णन किया है। कवि के अनुसार, उस समय समाज में हिन्दुओं तथा मुसलमानों में एक-दूसरे के प्रति काफी द्वेष था और वे एक-दूसरे के धर्म से घृणा करते थे। हिन्दू राम को महान समझते थे, जबकि मुसलमान खुदा को। मगर, दोनों राम और खुदा का नाम लेकर भी अपने ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सके, क्योंकि उनके मन में प्रभु की भक्ति से ज्यादा आपसी भेदभाव और नफ़रत की भावना मौजूद थी।

इसी वजह से संत कबीर दास जी ने हमें यह उपदेश दिया कि हिन्दू-मुस्लिम दोनों एक हैं और राम-खुदा दोनों ईश्वर के ही रूप हैं। इसलिए हमें आपसी भेदभाव को छोड़कर सर्वश्रेष्ठ ईश्वर (फिर चाहे वो राम हो या फिर खुदा) की भक्ति में लीन हो जाना चाहिए। तभी हम मोक्ष को प्राप्त कर पाएंगे।

काबा फिरि कासी भया, रामहिं भया रहीम।

मोट चून मैदा भया, बैठि कबीरा जीम।6।

कबीर की साखी अर्थ सहित:- प्रस्तुत दोहे में कबीर दास जी ने हिन्दू-मुसलमान के आपसी भेदभाव को नष्ट करने का संदेश दिया है। कवि का मानना है कि अगर कोई हिन्दू या मुसलमान आपसी भेदभाव को छोड़कर, निष्पक्ष होकर प्रभु की भक्ति में लीन हो जाए, तो उसे मंदिर-मस्जिद एक-समान लगने लगेंगे। फिर उसे राम व रहीम एक ही ईश्वर के दो रूप लगने लगेंगे, जिनमें कोई अंतर नहीं होगा। इस प्रकार हिन्दुओं व मुसलमानों को मस्जिद तथा मंदिर एकसमान रूप से पवित्र लगने लगेंगे।

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