कबीरदास
गुरु गोबिन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारि गुरु आपने, गोबिन्द दियो मिलाय।।
गुरु कुम्हार सिष कुंभ है, गढ़-गढ़ काढ़े खोट।
अंतर हाथ सहारि दै. बाहर बाहै चोट।।
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदै साँच है. ताके हिरदै आप।।
काल्ह करै सो आज कर, आज करै सो अब।
पल में परलै होयगी, बहुरि करैगा कबा।
अति का भला न बोलना, अति की भली न चुप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धुप।।
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कबीर दोहावली
Explanation:
भगवान् और गुरु दोनों खड़े हैं लेकिन गुरु को सबसे बड़ा बता दिया
कुम्हार घड़े को उस तरह पीटता है जैसे गुरु शिष्य को कुशल बनाने के लिए पीटता है
जो सच्चा होता है उसके ह्रदय में आप है
जो करना है आज ही करलो कल किसने देखा है
ज्यादा भले भी मत बनो और ज्यादा शांत भी मत रहो और ज्यादा गुस्सा भी मत दिखाओ और ज्यादा धुप में भी मेहनत मत करो बस समय नुसार काम करो
थैंक्स दो और
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