कबीरदास जी अथवा माखनलाल चतुर्वेदी का साहित्य परिचय निम्न बिंदुओं के आधार पर दीजिए
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Explanation:
संत कबीर दासजीवन परिचय
महान समाज सुधारक और संत कबीर का जन्म काशी के निकट सन 1398 ईसवी में हुआ था। कहा जाता है कि कबीर दास विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। उसने लॉक लग जा के भय से शिशु को काशी के निकट लहरतारा नामक तालाब के निकट छोड़ दिया था। नीरू और नीमा नामक जुलाहा दंपति ने इनका पालन पोषण किया और नाम रखा कबीर। कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे जैसे कि उन्होंने स्वीकार किया है-
मसि कागज छुयों नहीं ,कलम गही नही हाथ।
इनके गुरु स्वामी रामानंद जी थे ।इन्होंने गृहस्थ जीवन व्यतीत किया। 120 वर्ष की आयु में 15 से 18 ईसवी में इनका स्वर्गवास हो गया उनके अवसान के विषय में दोहा प्रचलित है--
संवत पन्द्रह सौ पचहत्तर, कियो मगहर गौन।
माघ सुदी एकादशी, हल्यौ पौन में पौन।
रचनाएं
बीजक संग्रह के शब्द साखी और रामायणी तीन भाग हैं कबीर ग्रंथावली तथा कवि रत्नावली नाम से भी कबीर की कविताओं के संग्रह प्रकाशित हुई।
रस छंद अलंकार
रस की दृष्टि में से कबीर ने संयोग और वियोग श्रृंगार का विशेष वर्णन किया भक्ति ज्ञान और वैराग्य चित्रण से उत्कृष्ट कोर्ट का शांत रस दिखलाया पड़ता है।
कबीर की रचना जदपि अलंकार की दृष्टि से नहीं लिखी गई है फिर भी उस में स्वाभाविक रूप से अलंकार आ ही गए हैं। उनकी रचनाओं में रूपक उपमा उत्प्रेक्षा अन्योक्ति देहांत यमक अनुप्रास अलंकार स्वभाविक रूप से आजा आ गए हैं।
छंद शास्त्र की दृष्टि से कबीर ने साखी दोहा रमैनी चौपाई और दोहा थक गए पदों का उपयोग किया है।
साहित्यिक महत्व
कबीर के काव्य का सर्वाधिक महत्त्व धार्मिक एवं सामाजिक एकता और भक्ति का संदेश देने में है। उन्होंने हिंदी साहित्य में एक नवीन युग चेतना और न्यूनतम जीवन दर्शन प्रदान किया। उनका संदेश पवित्र और ब्रह्मांड बारो से रहित सहज भक्तों का संदेश था। उनके समाज सुधारक रूप में युग प्रवर्तक महाकवि का रूप भी छपा हुआ है। रहस्यवादी कवि के रूप में इनका हिंदी में सर्वोच्च स्थान है यथा---
तत्व तत्व कबीरा कहीं, तुलसी कहीं अनूठी।
बची कुची सूरा कहीं, और कहीं सब झूठी।।