कबीरदास के अनुसार कैसे गुरु शिष्य अंtकाl में पछताते हैं? इस पछतावे का कारण क्या है?
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कबीरदास के अनुसार कैसे गुरु शिष्य अंtकाl में पछताते
kiuki way logo ko bastabik dharm aur gyan ke shi siksha dene may safal nhi hoti .
Answer:
कबीरदास के अनुसार इस पछतावे का कारण गुरु शिष्य की अज्ञानता है। इस दुनिया में दो तरह के गुरु शिष्य होते है। एक जो विवेकी और अहंकार रहित होते हैं। और दूसरे जो सिर्फ उच्चारण करते है परन्तु कतिथ तथ्यों को अपने आचरण में उतरते नहीं हैं, अगर ये समय से चेत नहीं हो पाते तब इन्हे पास पछतावे के अलावा कुछ नहीं रह जाता
Explanation:
कबीर के अनुसार पूरी दुनिया में केवल ईश्वर की सत्ता है, अन्य कोई भी सत्ता नहीं है। क्योंकि ईश्वर की सत्ता समय की शुरुआत से लेकर समय के अंत तक हैं। और ईश्वर की सत्ता को कभी बंद नहीं किया जा सकता। तो उन्होंने ईश्वर की सत्ता को सर्वप्रथम माना है
भावार्थ: अपने सिर की भेंट देकर गुरु से ज्ञान प्राप्त करो | परन्तु यह सीख न मानकर और तन, धनादि का अभिमान धारण कर कितने ही मूर्ख संसार से बह गये, गुरुपद – पोत में न लगे। गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा जाय। कहैं कबीर सो संत हैं, आवागमन नशाय॥
कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति के प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है। उनके अनुसार ईश्वर न मंदिर में है, न मस्जिद में; न काबा में हैं, न कैलाश आदि तीर्थ यात्रा में; वह न कर्म करने में मिलता है, न योग साधना से, न वैरागी बनने से। ये सब उपरी दिखावे हैं, ढोंग हैं। इनमें मन लगाना व्यर्थ है।
कबीरदास के अनुसार कैसे गुरु शिष्य अंtकाl में पछताते हैं? इस पछतावे का कारण क्या है
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