कबीरदास की मधुर वाणी के लिए क्यों प्रेरित करते हैं ?
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हमारी बोली में माधुर्य के साथ-साथ शिष्टता भी होनी चाहिए। हमारी वाणी ही हमारी शिक्षा-दीक्षा, कुल की परंपरा और मर्यादा का परिचय देती है।
मधुर वाणी से मनुष्य, पशु-पक्षी भी प्रिय बन सकते हैं। यह वह रसायन है जिससे लोहा भी सोना बन जाता है, यह वह औषधि है।
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