कबीरदास का दोहा कबीर सूता क्या करै , काहे न देखै जागि । जाके सँग तैं बीछुड्या , ताही के सँग लागि ।। अर्थ
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कबीर' सूता क्या करै, काहे न देखै जागि । जाको संग तैं बीछुड्या, ताही के संग लागि ॥4॥ भावार्थ / अर्थ – कबीर अपने आपको चेता रहे हैं, अच्छा हो कि दूसरे भी चेत जायं । ... `कबीर' प्रेम न चषिया, चषि न लीया साव ।
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कबीर' सूता क्या करै, काहे न देखै जागि । जाको संग तैं बीछुड्या, ताही के संग लागि ।।
भावार्थ / अर्थ – कबीर अपने आपको चेता रहे हैं, अच्छा हो कि दूसरे भी चेत जायं । ... `कबीर' प्रेम न चषिया, चषि न लीया साव ।
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