❖ कबीरदास के दोहोिं मे धार्मिक आडम्बरोिं का विरोध मिलता है | इस
का क्या कारण है ??
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कबीरदास के दोहों मे धार्मिक आडम्बरोिं का विरोध मिलता है | इस का क्या कारण है ??
कबीरदास जी एक महान समाज सुधारक थे। उन्होंने अपने युग में व्याप्त सामाजिक अंधविश्वासों, कुरीतियों और रूढ़िवादिता का विरोध किया। कबीरदास भक्तिकाल के निर्गुण कवियों में एक थे| वह निर्गुण भक्ति में विश्वास करते थे । कबीर जी ने रूढ़ियों, सामाजिक कुरितियों, तिर्थाटन, मूर्तिपूजा, नमाज, रोजादि का खुलकर विरोध किया |
कबीरदास जी हमेशा अपने दोहों में समझाते है कि ईश्वर एक है | ईश्वर का कोई दूसरा नाम नहीं है | ईश्वर मनुष्य के अंदर पाए जाते है | ईश्वर को प्राप्त करने के लिए हमें जगह-जगह घूमने की जरूरत नहीं है | भगवान को पाने के लिए सच्चे मन से भक्ति की जरूरत होती है | भगवान को प्राप्त करने के लिए दिखावे की जरूरत नहीं होती है | हमें ऐसे अपना समय को बर्वाद नहीं करना चाहिए |
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