कबीरदास ने किसके स्थानको महान क्यों बताया है, साथ ही कैसे आडंबरों का उन्होंने डटकर विरोध किया, क्यों ?
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संत कबीर दासजी ने वर्षों पहले जीवन जीने के जो रूल अपने दोहों के जरिए बताए, वो आज के जमाने में भी उतने ही कारगर हैं, जितने उस वक्त थे। इन दोहों को अगर हम अपनी व्यस्ततम जीवन शैली में उतारें तो बस लाभ ही लाभ है। उक्ताशय की बात प्रवचनकर्ता पंथश्री सुरेश प्रकाश ने किंदरई में जारी कबीर महापुराण में श्रद्धालुजनों से कही।
समाज सुधारक संत कबीरदास के चरित्र का वर्णन करते हुए बताया कि इन्होंने जातिवाद एवं छूआछूत का तथा धर्म से संबंधित आडंबरों का भी विरोध किया।
श्रीसद्गुरु कबीर साहेब सेवा समिति पौड़ी के तत्वावधान में चल रही कबीर महापुराण में उन्होंने आगे कहा कि धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय। इसका अर्थ है हर काम के परिणाम के लिए हमें धैर्य रखना चाहिए। कर्म करने के बाद परिणाम के लिए उतावलापन जरूरी नहीं है। जैसे एक माली पेड़ को सौ घड़े पानी एक साथ दे तब भी पेड़ पर फल तो मौसम आने पर ही लगेंगे। वैसे ही हमें हमारे प्रयासों, कार्यों का रिजल्ट वक्त आने पर मिलेगा। इसी प्रकार पोथी पढि़ पढि़ जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय। इसके भावार्थ में बताया कि मोटी-मोटी पुस्तकें पढ़कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुंच गए, लेकिन वे सभी विद्धान नहीं बन सके। कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम के ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ लें या प्यार के वास्तविक रूप पहचान ले तो वहीं सच्चा ज्ञानी है। यह प्रेम सिर्फ प्रिय व्यक्ति से नहीं बल्कि आस-पास के सभी चराचर जीवों से हैं। प्रफेशनल लाइफ में कहिए तो टीम भावना।