कबीरदास पर निबन्ध | Write an Essay on Kabirdas in Hindi
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कबीर की शिक्षा-दीक्षा का अच्छा प्रबंध न हो सका। ये अनपढ ही रहे। इनका काम कपड़े बुनना था। ये जुलाहे का काम करते थे परन्तु साथ ही साथ साधु संगति और ईश्वर के भजन चिंतन में भी लगे रहते थे। इनका विवाह 'लोई' नामक स्त्री से हुआ था। इनके 'कमाल' नामक एक पुत्र और 'कमाली' नामक एक पुत्री थी।
कबीरदास ने अपना सारा जीवन ज्ञान देशाटन और साधु संगति से प्राप्त किया। ये पढ़े-लिखे नहीं थे परन्तु दूर-दूर के प्रदेशों की यात्रा कर साधु-संतों की संगति में बैठकर सम्पूर्ण धर्मों तथा समाज का गहरा अध्ययन किया। अपने इस अनुभव को इन्होने मौखिक रूप से कविता में लोगों को सुनाया।
कबीरदास का जन्म ऐसे समय में हुआ था जब कि हमारे देश में चारों तरफ अशांति और अव्यवस्था का बोलबाला था। विदेशी आक्रमणों से देश की जनता पस्त थी। अनेक धर्म और मत-मतान्तर समाज में प्रचलित थे। आर्थिक दशा बड़ी दयनीय थी। ऐसे कठिन समय में जन्म लेकर इस युग दृष्टा महान संत ने देश की जनता को एक नया ज्ञान का ज्योतिर्मय मार्ग दिखाया
कबीरदास जी
हिंदी साहित्य के भक्तिकाल के निर्गुण काव्य धारा के कवि के रूप में कबीरदास जी काफी प्रसिद्ध है। कबीरदास जी को "वाणी का डिक्टेटर " भी कहा जाता है।
कबीरदास जी के संपर्क में कहा जाता है कि कबीर दास जी काफी फक्कड़ व्यक्ति थे। जो मन में रहता था वह बयान कर देते थे। गलत का हर समय विरोध करते थे और सही का साथ देते थे।
कबीरदास जी मूर्त्ति पूजा का खंडन करते थे क्योंकि वह निर्गुण काव्य धारा के कवि थे और निर्गुण ब्रह्म का कोई स्वरूप , आकार, रंग नहीं होता है निर्गुण ब्रह्म की उपासना कल्पना करके की जाती है।
कबीरदास जी सदाचरण पर जोर देते थे। वह ऊंचे कुल , नीचे कुल को नहीं मानते थे वह इनसानियत को पहले महत्त्व देते थे। उनके अनुसार इंसान अपने कर्मों से महान होता है ऊंचे कुल में जन्म लेकर कोई महान नहीं होता है।
कबीरदास जी सबको साथ लेकर चलने में विश्वास करते थे। कबीरदास जी के अनुसार सब पहले मानव है फिर हिंदू, मुस्लिम, सीख और ईसाई हैं क्योंकि सबके खून लाल है किसी का हरा या पीला नहीं है।
कबीरदास जी सबके मसीहा थे। सबको सही राह दिखलाते थे। इस कारण ही आज भी उनकी चर्चा स्कूल कालेज के पाठ्यक्रम में है।