kabeer Rahshwad Kavi hai vivechna kijiye
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कबीर की मूल अनुभूति अव्दैत की है, लेकिन कबीर ने उसे रहस्यवाद के रूप में व्यक्त किया है। ... इस कारण उनका भगवत-प्रेम रहस्यवाद कहलाया। कबिर ने अव्दैत ज्ञान, प्रेममूलक भक्ति और रहस्यवाद के मिश्रण से निर्गुण भक्ति में मौलिक स्थापना की। रहस्यवादी प्रेम को अपनाने के कारण उनकी भक्ति में सुगण भक्ति जैसी सरसता आ गई।
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