Hindi, asked by Himanshur2553, 9 months ago

कभी अचानक भूतों का-सा, प्रकटा विकट महा आकार। कड़क-कड़क, जब हँसते हम सब, थर्रा उठता है संसार

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Answered by kirat7524
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बादल

Sumitranandan Pant

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सुरपति के हम हैं अनुचर ,

जगत्प्राण के भी सहचर ;

मेघदूत की सजल कल्पना ,

चातक के चिर जीवनधर;

मुग्ध शिखी के नृत्य मनोहर,

सुभग स्वाति के मुक्ताकर;

विहग वर्ग के गर्भ विधायक,

कृषक बालिका के जलधर !

भूमि गर्भ में छिप विहंग-से,

फैला कोमल, रोमिल पंख ,

हम असंख्य अस्फुट बीजों में,

सेते साँस, छुडा जड़ पंक !

विपुल कल्पना से त्रिभुवन की

विविध रूप धर भर नभ अंक,

हम फिर क्रीड़ा कौतुक करते,

छा अनंत उर में निःशंक !

कभी चौकड़ी भरते मृग-से

भू पर चरण नहीं धरते ,

मत्त मतगंज कभी झूमते,

सजग शशक नभ को चरते;

कभी कीश-से अनिल डाल में

नीरवता से मुँह भरते ,

बृहत गृद्ध-से विहग छदों को ,

बिखरते नभ,में तरते !

कभी अचानक भूतों का सा

प्रकटा विकट महा आकार

कड़क,कड़क जब हंसते हम सब ,

थर्रा उठता है संसार ;

फिर परियों के बच्चों से हम

सुभग सीप के पंख पसार,

समुद तैरते शुचि ज्योत्स्ना में,

पकड़ इंदु के कर सुकुमार !

अनिल विलोरित गगन सिंधु में

प्रलय बाढ़ से चारो ओर

उमड़-उमड़ हम लहराते हैं

बरसा उपल, तिमिर घनघोर;

बात बात में, तूल तोम सा

व्योम विटप से झटक ,झकोर

हमें उड़ा ले जाता जब द्रुत

दल बल युत घुस बातुल चोर !

व्योम विपिन में वसंत सा

खिलता नव पल्लवित प्रभात ,

बरते हम तब अनिल स्रोत में

गिर तमाल तम के से पात ;

उदयाचल से बाल हंस फिर

उड़ता अंबर में अवदात

फ़ैल स्वर्ण पंखों से हम भी,

करते द्रुत मारुत से बात !

पर्वत से लघु धूलि.धूलि से

पर्वत बन ,पल में साकार --

काल चक्र से चढ़ते गिरते,

पल में जलधर,फिर जलधार;

कभी हवा में महल बनाकर,

सेतु बाँधकर कभी अपार ,

हम विलीन हों जाते सहसा

विभव भूति ही से निस्सार !

हम सागर के धवल हास हैं

जल के धूम ,गगन की धूल ,

अनिल फेन उषा के पल्लव ,

वारि वसन,वसुधा के मूल ;

नभ में अवनि,अवनि में अंबर ,

सलिल भस्म,मारुत के फूल,

हम हीं जल में थल,थल में जल,

दिन के तम ,पावक के तूल !

व्योम बेलि,ताराओं में गति ,

चलते अचल, गगन के गान,

हम अपलक तारों की तंद्रा,

ज्योत्सना के हिम,शशि के यान;

पवन धेनु,रवि के पांशुल श्रम ,

सलिल अनल के विरल वितान !

व्योम पलक,जल खग ,बहते थल,

अंबुधि की कल्पना महान !

धूम-धुआँरे ,काजल कारे ,

हम हीं बिकरारे बादल ,

मदन राज के बीर बहादुर ,

पावस के उड़ते फणिधर !

चमक झमकमय मंत्र वशीकर

छहर घहरमय विष सीकर,

स्वर्ग सेतु-से इंद्रधनुषधर ,

कामरूप घनश्याम अमर !

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Answered by yogitasinghania
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Explanation:

badal kaise prakat hote hai

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