कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगो?<br />
श्री रघुनाथ कृपालु कृपा तें सन्त सुभाव गहौंगो।।<br />
यथा लाभ सन्तोष सदा, काहू सौं कछु न चहौंगो।<br />
परहित निरत निरन्तर मन क्रम वचन नेम निबहौंगो।।<br />
परुष बचन अति दुसह श्रवण सुनि तेहि पावक न दहौंगो।<br />
बिगत मान, सम सीतल मन, पर गुन, नहिं दोख, कहौंगो।।<br />
परिहरि देह जनित चिन्ता, दुख सुख समबुद्धि सहौंगो।<br />
तुलसिदास प्रभु यहि पथ रहि अबिचल हरिभक्ति लहौंगो।।<br />
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Ye sb ky kar rhe ho bhai
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