कभी-कभी अचानक ही विधाता हमें ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व से मिला देता है जिसे देख स्वयं अपनी जीवन की रिश्ता छोटी लगने लगती है हमें तब लगता है कि भले ही उस अंतर्यामी ने हमें जीवन में कभी अपना कारण ही दंडित कर दिया हो किंतु हमारे किसी अंग को हम से बिछड़ कर हमें वंचित क्यों नहीं किया इसका मतलब??fast mera exam h kal plz
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हमें तब लगता है कि भले ही उस अंतर्यामी ने हमें जीवन में कभी अकस्मात् अकारण ही दंडित कर दिया हो, किंतु हमारे किसी अंग को हमसे विच्छिन्न कर हमें उससे वचित तो नहीं किया। फिर भी हममें से कौन ऐसा मानव है जो अपनी विपत्ति के कठिन क्षणों में विधाता को दोषी नहीं ठहराता।
मैंने अभी पिछले ही महीने, एक ऐसी अभिशप्त काया देखी है, जिसे विधाता ने कठोरतम दड दिया है, किंतु उसे वह नत मस्तक आनंदी मुद्रा में झेल रही है, विधाता को कोसकर नहीं।
कभी-कभी अचानक ही विधाता हमें ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व से मिला देता है जिसे देख स्वयं अपनी जीवन की रिश्ता छोटी लगने लगती है हमें तब लगता है कि भले ही उस अंतर्यामी ने हमें जीवन में कभी अपना कारण ही दंडित कर दिया हो किंतु हमारे किसी अंग को हम से बिछड़ कर हमें वंचित क्यों नहीं किया ।
उपुर्युक्त गद्यांश का अर्थ निम्नलिखित है।
- यदि कभी हमारे साथ कुछ बुरा घटित होता है तो हमें लगता है कि ईश्वर हमारे साथ ही ऐसा क्यों कर रहा है, हमें लगता है कि भगवान पक्षपात करता है , किसी किसी का जीवन खुशियों से भरा हुआ है तथा हमारे हिस्से में दुःख ही दुख है परन्तु ऐसा नहीं होता ईश्वर समदृष्टि है वह दुष्कर्मियों को भी माफ कर देता है लेकिन ये सब हमारे किए हुए कर्म होते है जिनका भुगतान हमें हर परिस्थिति में करना ही होता है।
- हमें इन विपरीत परिस्थितियों का सामना हंसी खुशी करना चाहिए न कि दुखी होकर।
- इस बात का अहसास करवाने के लिए ही हमें ईश्वर ऐसे लोगों से मिलवाता है जिनके आगे हमारा दुख कुछ भी नहीं, वे हमारे जीवन में प्रेरणा स्त्रोत बनकर आते है क्योंकि वे कभी भी भगवान से कोई शिकायत नहीं करते, मुस्कुराते हुए बार समस्या का समाधान निकालते हैं।
- यदि कभी हमारी उंगली कट जाती है या थोड़ा सा घाव हो जाता है तो हम उसकी मलमपट्टी करते है, उंगली काट नहीं देते, उसी प्रकार हम अपनी सूझ - बूझ से हर समय का समाधान निकाल सकते हैं।