कभी कभी हृदय वो भी देख लेता है जो आँख नही देख पाती है पर निबंध 1000 शब्दो में
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कभी कभी ह्रदय वो भी देख लेता है जो आँख नहीं देख पाती है
मैं विशाखापत्तनम के हॉस्टल में रहकर पढ़ती हूँ ,बहुत अच्छा माहौल है I अनुशासन है ,खान पीन अच्छा है साड़ी लड़कियां अच्छी हैं Iपर जब मैं लेटती हूँ बस पूरा परिदृश्य आँखों के आगे घुमने लगता है I लगता है ,जैसे कि मेरी दीदी क्या कर रही होगी शायद रसोई में ,माँ शायद पेपर पढ़ते हुए ,एक छोटा बच्चा नानी के साथ बातें करते हुए और मैं वहीँ पहुँच जाती हूँ I दो तीन दिन बाद जिस दिन मेरे कॉलेज में फ़ोन करने कि अनुमति होती थी I मैंने मम्मी से पूछा कल किसी की तबियत खराब थी क्या रात में ? मम्मी ने कहा नहीं ! क्यूंकि बहार वाले बछो को घर वाली प्रॉब्लम बटन अनहि चाहती थी I मैंने माना ही नहीं और कहा सच बताओ तुम्ही को कुछ हुआ था I बड़ी मुश्किल से उसने बताया कि रात के तीन बजे मम्मी स्वयं बिस्तर के आगे फिसल गयी थी I
तो देखिये जो बातें आँखें नहीं देख पाती हैं वो ह्रदय देख लेता है I अगर कभी बुरे स्वप्न आते हैं और रात के आखिरी प्रहर में आते हों तो निश्चित है ह्रदय आँखों के बंद रहने कि स्थति में दूर रहने की भी स्थिति में ह्रदय को आभास हो जाता है कि आज कुछ नयी खबर आने वाली है और ऐसा होता है I माँ बच्चे का प्यार जितना आँखें देख पाती हैं उससे भी ज्यादा ह्रदय उसे कहीं से भी देखता रहता है I एक एक धड़कन में बच्चे और माँ के प्यार का संवाद चलता ही रहता है Iचाहे वो कहीं भी हो बंद कमरे में रहकर भी बहार की ध्वनिया
जैसे चिड़ियों का चह्चहाना ,किसी ख़ास त्यौहार के गीत ,कान से सुन पड़ता है और ह्रदय सबकुछ महसूस करते रहता है I क्षण भर के लिए ह्रदय उस त्यौहार में खुद को शामिल समझता है I कोई गीत हमें दिखता नहीं हृदय के द्वारा हम महसूस करते हैं क्यूंकि गीत दिखाई देने की चीज़ नहीं है I
आँखों में है दृष्टि मगर ,ह्रदय भावनाओं का है ज्वार I
आँखें देखती थोडा थोडा देके ह्रदय सम्पूर्ण संसार II
आँखों से कहें न कहें पहुँच जाती ह्रदय की बात I
इसके लिए समय न कुछ भी ह्रदय की कुछ अपनी बिसात II