कभी कभी हृदय वो भी देख लेता है जो आँख नही देख पाती है पर निबंध 1000 शब्दो में h jaxan Braun junior
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कभी कभी ह्रदय वह भी देख लेता है जो आँख देख नहीं पाती है
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ह्रदय !! एक अनमोल , अनोखा और ईश्वर का दिया हुआ अनमोल तोहफा है । पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ आँख, नाक , मुँह , जीभ , त्वचा और लिंग हैं किन्तु ये सभी बेकार हैं यदि हमारे पास ह्रदय न हो । आँख न हो मनुष्य हृदय से देख सकता है पर हृदय न होने से आँख बेकार है। तुलसीदास जी ने सही कहा है।
चितवनि चारु मारु मदहरनी। भावत हृदय जाय नहिं बरनी।।
अथात् -
हृदय एक ऐसी गहरी खाड़ी है जिसकी थाह विचारे जीव को उसमें रहने पर भी कभी-कभी उस भाँति नहीं मिलती जैसे ताल की मछलियाँ दिन रात पानी में बिलबिलाया करती हैं पर उसकी थाह पाने की क्षमता नहीं रखती ।
ह्रदय द्वारा कही गयी , सुनी गयी या फिर समझी हुई बातें का असत्य होना लगभग असंभव हैं । ये हमें प्रेम करना सिखाती है । विभिन्न प्रकार में भेद करना सिखाती है , माता का प्रेम क्या है, या फिर पत्नी का प्रेम क्या है |
ह्रदय वो सारी चीजें देख लेती है जो आखें देख नही पाती । माँ इतनी महान क्यों होती है , माँ को ईश्वर से भी उँचा दर्जा दिया गया है आखिर क्यों ?
क्योंकि वह अपने बच्चे के भाव को परख कर बता देती है उसे क्या चाहिए , क्या जरूरत है। उनके सामने खड़े आपको अपनी आँखों से कुछ पता नही चलेगा माँ ने आखिर समझा कैसे कि मुझे क्या चाहिए क्या नहीं ।
कारण है माँ ह्रदय से आपको चाहती है , आपका ह्रदय माँ को संदेश पहुचाने का काम करता है , वो बता देता है कि आपको क्या चाहिए ?
आपने एक कहानी सुनी होगी कि एक सुन्दर सी राजकुमारी को जानवर (बीस्ट) से प्यार हो जाता है । असल में प्यार का होना केवल सोंदर्य ( आँखों द्वारा देखी गयी) से नही अपितु ह्रदय का मिलन है । राजकुमारी का ह्रदय बीस्ट के ह्रदय को समझ पाता है कि यह बीस्ट नही बल्कि बीस्ट के रुप में राजकुमार है । और अंत में ये सच होता है बीस्ट एक राजकुमार बन जाता है।
राजकुमारी ने अपने ह्रदय से परखा तभी तो उन्हे योग्य राजकुमार प्राप्त हुआ , अगर वो आँखों देखा सच मानती तो शायद वो राजकुमार को प्राप्त न कर पाती , जो उनके योग्य था ।
हम जानते हैं कोई भी काम आप बिना दिमाग लगाये नही कर सकतै हैं पर यदि आप काम में दीमाग के साथ - साथ मन ( ह्रदय) भी लगाते हैं , तो आप तरक्की के उन बुलन्दियों को छू सकते हैं जिसके सपने आप अक्सर खुली आँखों मे देखा करते हैं । आपने सुना होगा अल्बर्ट आइन्स्टाईन के बारे में , वे भौतिकी को छोड़कर किसी विषय को पसंद नही करते थे, भौतिकी को उन्होने अपना जुनून बना लिया था , वो ह्रदय से सच्चे मन से कार्य करते थे । आज उन्हे भौतिकी का पिता माना जाता है।
आपने श्रीनिवासन रामानुजन का नाम तो सुना ही होगा । और आपको उनके बारे में ये भी जानकारी होगी कि वे सर्वश्रेष्ठ गणितज्ञ थे ,उन्हे महान गणितज्ञ , गणित के प्रति चाह ने बनाया । वे को सच्चे हृदय से चाहते थे।
रामकृष्ण परमहंस ने पहली मुलाकात में विवेकानन्द के भविष्य के बारे में में जान गये थे कि ये युवक असाधारण मानव है , उन्होने , विवेकानन्द में वो आत्मबल देखा था जो साधारण व्यक्ति में अक्सर नही पाया जाता । वैसे तो विवेकानन्द जी को अनेकों ने देखा होगा । पर उनके प्रतिभा की परख परमहंस जी ने की ।
आज दूनिया स्वामी विवेकानन्द जी के बताये मार्ग पर चल रही है। युवा के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
ह्रदय की ताकत १००० हाथियों के बल से भी ज्यादा मजबूत होती है । केवल एकदिन दिल ( ह्रदय ) लगाकर पढाई कर देखीये , मुझे विश्नास है आप जिस सिध्दांत कई दिनों से नही समझ पाया , वो आप आसानी से समझेंगे ।
कृष्ण को हृदय से अपना मानने वाली मीराबाई को कौन नही जानता । उनकी कृृष्ण के प्रति असीम भक्ति इस भजन आप महसूस कर सकते हैं मीराबाई के भजन से
" तुम बिन नैण दुखारा म्हारे घर आ प्रीतम प्यारा॥
तन मन धन सब भेंट धरूंगी भजन करूंगी तुम्हारा।
म्हारे घर आ प्रीतम प्यारा॥
तुम गुणवंत सुसाहिब कहिये मोमें औगुण सारा॥
म्हारे घर आ प्रीतम प्यारा॥
मैं निगुणी कछु गुण नहिं जानूं तुम सा बगसणहारा॥
म्हारे घर आ प्रीतम प्यारा॥
मीरा कहै प्रभु कब रे मिलोगे तुम बिन नैण दुखारा॥
म्हारे घर आ प्रीतम प्यारा॥ "
कहा जाता है कि मीराबाई को ईश्वर दिखते थे ।
मैने तो कभी नही देखा और आपने भी नही देखा होगा । क्योंकि हम ईश्वर से प्रेम तो करते हैं किन्तु मीरा की तरह उन्हे हृदय में नही बल्कि मंदिरों में ढूँढते हैं । ईश्वर के दर्शन केवल हृदय में किया जा सकता है।
ऐसे कई ऊदाहरण हम अपने जीवन में देख सकते हैं, जो हमें यह कहने पर मजबूर कर देती है कि " कभी - कभी ह्रदय वो देख लेता है जहाँ आँखे नही देख पाती है। "
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ह्रदय !! एक अनमोल , अनोखा और ईश्वर का दिया हुआ अनमोल तोहफा है । पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ आँख, नाक , मुँह , जीभ , त्वचा और लिंग हैं किन्तु ये सभी बेकार हैं यदि हमारे पास ह्रदय न हो । आँख न हो मनुष्य हृदय से देख सकता है पर हृदय न होने से आँख बेकार है। तुलसीदास जी ने सही कहा है।
चितवनि चारु मारु मदहरनी। भावत हृदय जाय नहिं बरनी।।
अथात् -
हृदय एक ऐसी गहरी खाड़ी है जिसकी थाह विचारे जीव को उसमें रहने पर भी कभी-कभी उस भाँति नहीं मिलती जैसे ताल की मछलियाँ दिन रात पानी में बिलबिलाया करती हैं पर उसकी थाह पाने की क्षमता नहीं रखती ।
ह्रदय द्वारा कही गयी , सुनी गयी या फिर समझी हुई बातें का असत्य होना लगभग असंभव हैं । ये हमें प्रेम करना सिखाती है । विभिन्न प्रकार में भेद करना सिखाती है , माता का प्रेम क्या है, या फिर पत्नी का प्रेम क्या है |
ह्रदय वो सारी चीजें देख लेती है जो आखें देख नही पाती । माँ इतनी महान क्यों होती है , माँ को ईश्वर से भी उँचा दर्जा दिया गया है आखिर क्यों ?
क्योंकि वह अपने बच्चे के भाव को परख कर बता देती है उसे क्या चाहिए , क्या जरूरत है। उनके सामने खड़े आपको अपनी आँखों से कुछ पता नही चलेगा माँ ने आखिर समझा कैसे कि मुझे क्या चाहिए क्या नहीं ।
कारण है माँ ह्रदय से आपको चाहती है , आपका ह्रदय माँ को संदेश पहुचाने का काम करता है , वो बता देता है कि आपको क्या चाहिए ?
आपने एक कहानी सुनी होगी कि एक सुन्दर सी राजकुमारी को जानवर (बीस्ट) से प्यार हो जाता है । असल में प्यार का होना केवल सोंदर्य ( आँखों द्वारा देखी गयी) से नही अपितु ह्रदय का मिलन है । राजकुमारी का ह्रदय बीस्ट के ह्रदय को समझ पाता है कि यह बीस्ट नही बल्कि बीस्ट के रुप में राजकुमार है । और अंत में ये सच होता है बीस्ट एक राजकुमार बन जाता है।
राजकुमारी ने अपने ह्रदय से परखा तभी तो उन्हे योग्य राजकुमार प्राप्त हुआ , अगर वो आँखों देखा सच मानती तो शायद वो राजकुमार को प्राप्त न कर पाती , जो उनके योग्य था ।
हम जानते हैं कोई भी काम आप बिना दिमाग लगाये नही कर सकतै हैं पर यदि आप काम में दीमाग के साथ - साथ मन ( ह्रदय) भी लगाते हैं , तो आप तरक्की के उन बुलन्दियों को छू सकते हैं जिसके सपने आप अक्सर खुली आँखों मे देखा करते हैं । आपने सुना होगा अल्बर्ट आइन्स्टाईन के बारे में , वे भौतिकी को छोड़कर किसी विषय को पसंद नही करते थे, भौतिकी को उन्होने अपना जुनून बना लिया था , वो ह्रदय से सच्चे मन से कार्य करते थे । आज उन्हे भौतिकी का पिता माना जाता है।
आपने श्रीनिवासन रामानुजन का नाम तो सुना ही होगा । और आपको उनके बारे में ये भी जानकारी होगी कि वे सर्वश्रेष्ठ गणितज्ञ थे ,उन्हे महान गणितज्ञ , गणित के प्रति चाह ने बनाया । वे को सच्चे हृदय से चाहते थे।
रामकृष्ण परमहंस ने पहली मुलाकात में विवेकानन्द के भविष्य के बारे में में जान गये थे कि ये युवक असाधारण मानव है , उन्होने , विवेकानन्द में वो आत्मबल देखा था जो साधारण व्यक्ति में अक्सर नही पाया जाता । वैसे तो विवेकानन्द जी को अनेकों ने देखा होगा । पर उनके प्रतिभा की परख परमहंस जी ने की ।
आज दूनिया स्वामी विवेकानन्द जी के बताये मार्ग पर चल रही है। युवा के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
ह्रदय की ताकत १००० हाथियों के बल से भी ज्यादा मजबूत होती है । केवल एकदिन दिल ( ह्रदय ) लगाकर पढाई कर देखीये , मुझे विश्नास है आप जिस सिध्दांत कई दिनों से नही समझ पाया , वो आप आसानी से समझेंगे ।
कृष्ण को हृदय से अपना मानने वाली मीराबाई को कौन नही जानता । उनकी कृृष्ण के प्रति असीम भक्ति इस भजन आप महसूस कर सकते हैं मीराबाई के भजन से
" तुम बिन नैण दुखारा म्हारे घर आ प्रीतम प्यारा॥
तन मन धन सब भेंट धरूंगी भजन करूंगी तुम्हारा।
म्हारे घर आ प्रीतम प्यारा॥
तुम गुणवंत सुसाहिब कहिये मोमें औगुण सारा॥
म्हारे घर आ प्रीतम प्यारा॥
मैं निगुणी कछु गुण नहिं जानूं तुम सा बगसणहारा॥
म्हारे घर आ प्रीतम प्यारा॥
मीरा कहै प्रभु कब रे मिलोगे तुम बिन नैण दुखारा॥
म्हारे घर आ प्रीतम प्यारा॥ "
कहा जाता है कि मीराबाई को ईश्वर दिखते थे ।
मैने तो कभी नही देखा और आपने भी नही देखा होगा । क्योंकि हम ईश्वर से प्रेम तो करते हैं किन्तु मीरा की तरह उन्हे हृदय में नही बल्कि मंदिरों में ढूँढते हैं । ईश्वर के दर्शन केवल हृदय में किया जा सकता है।
ऐसे कई ऊदाहरण हम अपने जीवन में देख सकते हैं, जो हमें यह कहने पर मजबूर कर देती है कि " कभी - कभी ह्रदय वो देख लेता है जहाँ आँखे नही देख पाती है। "
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