कबहुँ प्रबल बह मारूत, जहँ-तहँ मेघ बिलाहिं । जिमि कपूत के उपजे, कुल सद्धर्म नसाहिं ।। कबहुँ दिवस महँ निबिड़ तम, कबहुँक प्रगट पतंग । बिनसइ-उपजइ ग्यान जिमि, पाइ कुसंग-सुसंग ।। इन पणक्तीयो का सरल अर्थ लीखिये
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