कभी सीने पे रख के लेट जाते थे
कभी गोदी में लेते थे
कभी घुटनों को अपने रिहल की सूरत बना कर
नीम-सजदे में पढ़ा करते थे, छूते थे जबीं से
वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा आइंदा भी
मगर वो जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल
और महके हुए रुक्के
किताबें गिरने, उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे
उनका क्या होगा ? वो शायद अब नहीं होंगे !! bhavarth
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कभी सीने पे रख के लेट जाते थे
कभी गोदी में लेते थे
कभी घुटनों को अपने रिहल की सूरत बना कर
नीम-सजदे में पढ़ा करते थे, छूते थे जबीं से
वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा आइंदा भी
मगर वो जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल
और महके हुए रुक्के
किताबें गिरने, उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे
उनका क्या होगा ? वो शायद अब नहीं होंगे !
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please brilliant Mark
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