कबहुँ ससि माँगत आरि करें, कबहुँ प्रतिबिंब निहारि डरें।
कबहुँ करताल बजाइकें नाचत, मातु सबै मन मोद भरें ।।
कबहुँ रिसिआई कहै हठिकैं, पुनि लेत सोई जेहि लागी ।
अवधेस के बालक चारि सदा, तुलसी मन-मंदिर में विहरै।।
-तुलसीदास
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कबहूँ ससि मागत आरि करैं
तुलसीदास
कबहूँ ससि मागत आरि करैं कबहूँ प्रतिबिंब निहारि डरैं।
कबहूँ करताल बजाइकै नाचत मातु सबै मन मोद भरैं।
कबहूँ रिसिआइ कहैं हठिकै पुनि लेत सोई जेहि लागि अरैं।
अवधेस के बालक चारि सदा तुलसी-मन
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