Hindi, asked by tripti26, 1 year ago

Kabhi Nahi Ishwar ki Upma kin kin Se Di Hai Koi 5 udharan sahit Bataye

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Answered by DeepaliBhardwajAnnu
2
is this statement correct
Answered by srbh
7

क) चरण कमल बंदौ हरिराई ……………………………………… बार-बार बंदौ तेहिं पाई |
१) कवि का परिचय दीजिये |
उत्तर: सूरदास कृष्ण-भक्ति काव्य के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं | इनकी तीन प्रसिद्ध रचनाएँ हैं – ‘सूरसागर’, सूर-सारावली और ‘साहित्यलहरी’ | इनके काव्य में बाल-कृष्ण के सौंदर्य, उनकी चपल चेष्टाओं और क्रीड़ाओं की मनोहर झाँकी मिलती है | इनके काव्य में कृष्ण और गोपियों के अनन्य प्रेम का चित्रण है | इनके काव्य की भाषा सरल और मधुर ब्रजभाषा है | स्वाभाविकता, सरसता और मार्मिकता में सूर का काव्य अद्वितीय है |

२) ‘चरन कमल’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर: हिंदी और संस्कृत साहित्य में ईश्वर के आँखों और उनके चरणों को कमल की उपमा दी जाती है | इसका अर्थ होता है कि ईश्वर के नेत्र और चरण, कमल के फूलों की तरह सुंदर आकार के हैं | यहाँ भी कवि सूरदास यह कहना चाहते हैं कि भगवान कृष्ण के चरण, कमल के फूल के समान सुंदर हैं और वो उन चरणों की वंदना कर रहे हैं |

३) सूरदास के स्वामी कौन हैं ? वो उन्हें करुणामय क्यों कहते हैं ?
उत्तर: कवि सूरदास भगवान कृष्ण के अप्रतिम भक्त हैं | प्रस्तुत पद्यखंड में भी उन्होंने स्वामी शब्द भगवान कृष्ण के लिए ही प्रयोग किया है | सूरदास भगवान कृष्ण को करुणामय कहते हैं क्योंकि भगवान कृष्ण बहुत दयालु और भक्तवत्सल हैं | वो भक्तों की पीड़ा को तुरंत हर लेते हैं | उनकी कृपा हो तो असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं |

४) कवि के अनुसार भगवान कृष्ण की कृपा से कौन-कौन से असंभव कार्य संभव हो जाते हैं ?
उत्तर: कवि सूरदास जी कहते हैं कि यदि भगवान कृष्ण की कृपा हो तो अपाहिज व्यक्ति भी पहाड़ लाँघ सकता है | अँधा व्यक्ति भी सब कुछ देख सकता है | बहरा व्यक्ति सुन सकता है और गूँगा व्यक्ति दुबारा बोल सकता है | भिखारी व्यक्ति राजा बन सकता है | कवि के कहने का यह तात्पर्य है कि संसार का कोई भी असंभव कार्य हो, भगवान कृष्ण की कृपा से वह संभव हो जाता है |

ख) तजौ मन हरि विमुखन को संग ……………………………. चढत न दूजौ रंग |
१) ‘हरि विमुखन’ शब्द से कवि का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर: ‘हरि विमुखन’ शब्द से कवि ऐसे व्यक्तियों की ओर संकेत कर रहे हैं, जिनका ईश्वर भक्ति में मन नहीं लगता | ऐसे व्यक्ति सिर्फ संसार की वस्तुएँ पाना चाहते हैं | वो अपने साथ रहनेवालों को भी इसी तरह का बना देते हैं | कितना भी प्रयत्न करने पर ऐसे व्यक्ति पर भगवान की भक्ति का रंग नहीं चढ़ता |

२) कवि हरि विमुखन का संग त्यागने को क्यों कह रहे हैं ? अथवा
हरि विमुखन की संगति से क्या हानि होती है ?
उत्तर: हरि विमुखन व्यक्ति स्वयं कभी ईश्वर की भक्ति नहीं करता | उसका मन हमेशा सांसारिक प्रपंचो में लगा रहता है | वह दूसरों की भक्ति में भी रुकावट डालता है | ऐसे व्यक्ति का संग करने से मनुष्य में कुबुद्धि उत्पन्न होती है | भक्ति में बाधा पैदा होती है | इसलिए कवि हरि विमुखन का संग त्यागने को कहते हैं |

३) कारी कामरि पर दूजौ रंग न चढ़ने का क्या तात्पर्य है ? अथवा
काले कंबल पर दूसरा रंग नहीं चढ़ता इस बात का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर: काले रंग के कंबल पर कोई दूसरा रंग चढ़ाना बहुत कठिन होता है | इस उदाहरण द्वारा कवि यह बताना चाहते हैं कि हरि विमुखन व्यक्ति का स्वभाव भी इसी तरह का होता है | उसे कितना भी समझाओ, कितना भी ईश्वर भक्ति का रास्ता दिखाओ पर उसके मन में ईश्वर के प्रति प्रेम नहीं जागता | वह अपना स्वभाव नहीं बदलता |

४) कवि किन उदाहरणों द्वारा यह बता रहा हैं कि हरि विमुखन व्यक्ति का स्वभाव नहीं बदल सकता ?
उत्तर: कवि सूरदासजी ने हरि विमुखन व्यक्ति के स्वभाव को विभिन्न उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया है | जिस तरह साँप को कितना भी दूध पिलाओ वह जहर उगलना नहीं छोड़ता | कौए को कितना भी कपूर चुगाओ वह अपना कर्कश स्वर नहीं छोड़ता | कुत्ते को गंगा स्नान कराने से भी वह गंदगी के प्रति प्रेम नहीं छोड़ता | गधे को भले ही चंदन का लेप लगा दिया जाये, वह धूल में लोटने की आदत नहीं छोड़ता | बंदर को कितना भी मूल्यवान आभूषण पहना दिया जाए, वह उसे तोड़ के फेंक ही देगा | हाथी को कितना भी नहलाओ, वो स्वयं पर धूल जरूर डालेगा | पत्थर पर कितने भी तीर चलाओ, वह व्यर्थ ही जाता है | हरि विमुखन व्यक्ति का स्वभाव भी ऐसा ही होता है | उसे कितना भी समझाओ, कितना भी ईश्वर भक्ति का रास्ता दिखाओ पर उसके मन में ईश्वर के प्रति प्रेम नहीं जागता |

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