Kabir bhakti bhavna pr sahitya nibandh
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कबीर के काल में जब आम जनमानस नाना प्रचलित धर्म साधनाओं के फेर में पड असमंजस में था, तब कबीर ने अपनी भक्ति का ऐसा आधार जनता को दिया कि वह निर्गुण निराकार राम के रस में भावविव्हल हो उठी। कबीर हर धर्म की अच्छाईयों से प्रभावित हुए और हर धर्म की बुराइयों पर उन्होंने प्रहार किये और उन्हें जनचेतना के द्वारा दूर करने का प्रयास किया।
कबीर की भक्ति पर वैष्णव विचारधारा का आंशिक प्रभाव पडा, कबीर पर सिध्द और नाथ पंथी योगियों का भी प्रभाव पडा, कबीर पर सूफी मत का भी काफी प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। यही नहीं कबीर पर वैदिक साहित्य का प्रभाव ही नहीं पडा वरन् उन्हें वैदिक साहित्य का अच्छा खासा ज्ञान भी था। उनके लिये तो आचार्य क्षितिमोहन सेन ने यह कहा है कि, '' कबीर की आध्यात्मिक क्षुधा और आकांक्षा विश्वग्रासी है। वह कुछ भी नहीं छोडना चाहती, इसलिये वह ग्रहणशील है; वर्जनशील नहीं, इसलिये उन्होंने हिन्दु, मुसलमान, सूफी, वैष्णव, योगी प्रभृति सब साधनाओं को जोर से पकड रखा है।''
कबीर साहित्य के मर्मज्ञ श्री गोविन्द त्रिगुणायत का लिखते हैं, '' वस्तुत: कबीर ने मधुमक्खी के समान अपने समय में विद्यमान समस्त धर्म साधनाओं और निजी के योग से अपनी भक्ति का ऐसा छत्ता तैयार किया है जिसका मधु अमृतोपम है, जिसका पान कर भारतीय जन मानस कृत कृत्य हो उठा है। यह मधु अक्षुण्ण है, युगों से भारतीय इसकी मधुरिमा का रसास्वादन कर रहे हैं।''