Kabir das ek samaj sudharak kavi ke roop me annya kavi ki koi ek rachna kojh kar likiye
Answers
Answer:
भगत कबीर को हमने सन्त कबीर के रुप में जाना है, सन्त भी कविता करने वाले, समाज की विषमताओं पर व्यंग्य करने वाले। कबीर जैसे सन्त मध्यकाल की विषम व अंधकारमय समय में अपने ज्ञान का आलोक लेकर आए थे। कबीर का काल विधर्मी शासकों का काल था, जिनके पास बात-बात पर निर्दोष जनता का खून बहाने और कर लगाने के सिवा कोई काम न था, जिससे वे स्वयं खुल कर ऐयाशी भरा जीवन बिता सकें। मुगलों का हिन्दुओं पर तो प्रकोप था ही, उस पर हिन्दु धर्म के ठेकेदार कर्मकाण्ड को बढावा देकर अपना उल्लू सीधा कर रहे थे। बेचारी जनता मुगल शासकों के प्रकोप व धार्मिक अन्धविश्वासों के बीच पिसी जा रही थी। ब्राह्मण और सामन्त लोगों का अपना वर्ग था, जो चाटुकारिता से मुगलों से तो बना कर रखते थे और निम्न वर्ग का धर्म व शासन के नाम पर शोषण करते थे। ऐसे में कबीर ने इस ब्राह्मणवादी प्रवृत्ति व धार्मिक कट्टरता के उन्मूलन का बीडा उठाया था।
हांलाकि उनसे पहले रामानन्द आदि द्वारा भी यह प्रयास किये गए पर कबीर के प्रयास अधिक सफल रहे।
यद्यपि समाजसुधार या भाषणबाजी की प्रवृत्ति फक्कड क़वि कबीर में नहीं थी, किन्तु वे समाज की गंदगियों को साफ करना अवश्य चाहते थे। बस यही प्रवृत्ति उनको सुधारकों की श्रेणी में ला खडा करती है। कहने का अर्थ यह है कि समाजसुधारक बनने की आकांक्षा के बिना ही अपने निरगुन राम के दीवाने कबीर को स्वत: ही सुधारक का गरिमामय पद उनकी इस प्रवृत्ति के चलते प्राप्त हुआ। वास्तव में तो वे मानव मात्र के दु:ख से पीडित हो उसकी सहायता मात्र के लिये उठे थे। जनता के द:ुख और उसकी वेदना से फूट कर ही उनके काव्य की अजस्त्र धारा बही थी। मिथ्याडम्बरों के प्रति प्रतिक्रिया कबीर का जन्मजात गुण था। वे हर तथ्य को आत्मा व विवेक की कसौटी पर परखते थे। डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी कहते हैं कि, ''सहज सत्य को सहज ढंग से वर्णन करने में कबीर अपना प्रतिद्वन्द्वी नहीं जानते।''
कबीर की पावन वाणी आज के समाज और उसकी