kabir das ji ka doha jisme darshaya ho niti ki baatein bolni chahiye.
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1. प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय।।
2. जब मैं था तब हरिनहीं, अब हरिहैं मैं नाहिं।
प्रेम गली अति सॉंकरी, तामें दो न समाहिं।।
3. जिन ढूंढा तिन पाईयां, गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।
4. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो मन खोजा अपना, मुझ-सा बुरा न कोय।।
5. बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।।
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